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________________ [ २ अतएव दिगम्बर विश्वव्यापी होने के लायक है। जैन-कसोटी के कसे बिना मनमानी रीति से किसी को सच्चा या झूठा कहदेना यह केवल ज्ञान की अराजकता है । श्वे. ताम्बर और दिगम्बर के वास्तविक सत्यों का एकीकरण करने से ही शुद्ध जैन धर्म का स्वरूप मालूम होता है । और ऐसी अनेकान्त दृष्टि वाला जैनधर्म ही विश्वव्यापी बनने के योग्य है। दिगम्बर--क्या दिगम्बर मान्यतायें हैं, वे कल्पना मात्र ही है ? श्राप सप्रमाण खुलासा करें। . जैन-महानुभाव ? क्रमशः प्रश्न करो! पूज्य गुरुदेव की कृपा से मैं उत्तर देता हूं आपको स्वयं निर्णय हो जायगा कि जो जो मान्यताएं प्रचलित हैं वे एकान्तिक है ? जिनवाणी से विरुद्ध है ? तर्क शून्य है ? पराश्रित है ! अपने २ शास्त्र से भी विरुद्ध है ? कि ठीक है ? . दिगम्बर-यदि ऐसा है तो श्वेताम्बर दिगम्बर को एक बनाने की जो कोशिश होरही है उसमें बड़ी सफलता मिलेगी । अस्तु । पहले तो यह तय हो जाना चाहिये कि श्वेताम्बर और दिगम्बर ये वास्तव में एक है कि भिन्न है ? - जैन--दोनों सम्प्रदायों की जड तो एक ही है। परन्तु दोनों में शुरू से ही साक्षेप भेद हैं । जो इस प्रकार है। - भगवान महावीर के श्रमणसंघ में ओर दो मुनि संघ श्राकर सम्मिलित हुए थे। 1. भगवान पार्श्वनाथ का मुनि संघ, जो चातुर्याम याने चार, महाव्रत वाला था । विविध रंग वाले वस्त्रों का धारक था। इस संघ के प्राचार्य केशीकुमार थे जिन्होंने गणधर इन्द्रभूति गौतमस्वामीले परामर्श करके भगवान महावीर स्वामी के सघं में प्रवेश
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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