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________________ [ १३५ ] का समावेश आश्चर्य में हो जाता है । श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों अघटित घटनाओं का कभी २ होना भी मानते हैं और उसे आश्चर्य की संज्ञा देकर "किसी २ समय में ऐसा होजाता है" इतना ही उसक बारे में खुलासा करते हैं। वर्तमान चौवीसी में मल्लिकुमारी उन्नीसवें तीर्थकर हुए हैं। मगर यह आश्चर्य, माने अशक्य नहीं, दुशक्य घटना मानी जाती है अनेकान्तवादी ऐसी नैमित्तिक घटनाओं के बारे में एकान्त इन्कार भी नहीं कर सकते हैं। दिगम्बर--यदि दिगम्बरीय शास्त्रों में भी स्त्रीदीक्षा और स्त्रीमुक्ति का विधान है तो दिगम्बर समाज उनका निषेध क्यों । करता है ! जैन--दिगम्बर समाज नग्नता का एकान्त हामी है. इसी से उसको क्रमशः वस्त्र, वस्त्रधारी की मुक्ति, और सीलसाला में स्त्रीमुक्ति का निषेध करना पडा है। वास्तव में नग्नता की एकान्त मान्यता हट जाय तो स्त्री मुक्ति का निषेध की भी आवश्यकता नहीं रहेगी, अंत एव अनेकान्तबाद के ज्ञाता दिगम्बर प्राचार्यों ने स्त्रीमुक्ति का भी कुछ २ उल्लेख भी किया है। जिनको में ऊपर बता चुका हूं। इसके अलावा वैदिक माहित्य भी स्त्री को वेदा ध्ययन और मुक्ति का कुछ निषेध करता है. उसके असर वाल ब्राह्मणों में से बने हुए ब्रह्मचारी और भट्टारकों ने भी उस विषय को संभवतः ज्यादा जोर दे दिया होगा। कुछ भी हो, किन्तु स्त्री दीक्षा और स्त्रीमुक्ति दिगम्बर शास्त्रों से भी सिद्ध है। दिगम्बर-गतिाजी अ०६ के श्लोक ३२ में कहा है. कि मां हि पार्थ ! व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः । स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रा स्तेपि यान्ति परां गतिम ॥ इसके सामने जैनधर्म तब ही उदार विशाल और विश्वव्यापक बन सकता है जब कि शूद्रमुक्ति और स्त्रीमुक्ति का विधायक हो । ऊपर के प्रमाणों को देखकर हर एक विचारक को खुशी होगी कि दिगम्वर शास्त्र भी शूद्रमुक्ति और स्त्रीमुक्ति बताते हैं, यह जैनों के लिये अभिमान की बात है । इतना ही नहीं किन्तु जैन दर्शन इस हालत में ही सर्वोपरि दर्शन है, अनेकान्त दर्शन है।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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