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________________ [१२४ ] जाहिर करते है कि "णो खलु इत्थी अजीवो, ण या वि अभव्वा, ण या वि दंसण विरोहिणी, णो अमाणुसा, णो अणारियउप्पत्ति, णो असंखेज्जाउा, णो अइ कूरमइ, णो ण उबसंतमोहा, णो ण शुद्धाचारा, णो असुद्धबोही, णो ववसायवाज्जिया, णो अपुव्वकरण विरोहिणी; णो णवगुणठाण रहिया, णो अजोगा लद्धीए, णो अकल्लाण भायणं त्ति, कहं ण उत्तमधम्म सहिगत्ति"। (सुन्तवाली ललित विस्तरा० पृ० १०६) स्त्री जीव है, भव्य है सम्यक्त्व युक्त है, मनुष्य है, पार्योत्पन्न है. संख्याते वर्ष की आयु वाली है, अक्रूर बुद्धि वाली है, उपशान्त मोहनीय है, शुद्धाचारिणी है, शुद्ध बोधि है, व्यवसाय युक्त है, अपूर्वकरण साधिका है । नवम गुणस्थान सहित है, लब्धियोग्य है, कल्याण के पात्र रूप है. फिर भी वो उत्तम धर्म की साधिका नहि है. यह कैसे माना जाय? . २-दिगम्बराचार्य शकटायन फरमाते हैं कि - मायादिः पुरुषाणामपि, द्वेषादि प्रसिद्ध भावश्च । पण्णां संस्थानानां, तुल्यो वर्ण त्रयस्यापि ॥ २८ ।। "स्त्री" नाम मन्दसत्वा, उत्संग समग्रता न तेनात्र । तत्कथ मनल्प वृत्तयः, सन्ति हि शीलाम्बुधेलाः ॥ २६ ॥ संत्यज्य राज्य लक्ष्ा पति पुत्र भ्रातृ बन्धु सम्बन्धम् । परिव्राज्य वहायाः कि मसत्वं सत्यभामादेः ॥ ३२॥ अन्तः कोटी कोटी स्थितिकानि, भवन्ति सर्वकर्माणि । सम्यक्त्व लाभ एवा, ऽशेषो प्यक्षयकरो मार्गः॥ ३४ ॥ अष्टशत मेक समये, पुरुषाणा मादिरागमः॥ ३५ ॥ क्षपक श्रेण्यारोहे, वेदेनोच्येत भूतपर्वेण ।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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