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________________ [ ११ ] अतः वो मुनि दीक्षा ले सकती है । उसके "स्त्री वेद मोहनीय कर्म" का उदयंविच्छेद नव में गुणस्थान में हो जाता है । यदि नग्नता का ही आग्रह हो तो स्त्री के लिये नग्न रहना भी कोई मुश्किल बात नहीं है । देखो ? स्त्री पति आदि के निमित्त सर्वस्व बलि कर देती हैं, भाँति २ के कष्ट सहती है, जिन्दा ही अग्नि में प्रवेश कर सती होती है, जौहर करती हैं तो वह धर्म के लिये कष्ट सहे तपस्या करें और नग्न बन कर रहे उसमें कौन सी अस म्भव बात है ? अत एव दिगम्बर शास्त्र भी स्त्री दीक्षा की हिदायत करते हैं । खुद तीर्थकर भगवान ही चारों संघों में श्रमणी ( जिंका ) का पवित्र स्थान रखकर स्त्रीदीक्षा फरमाते हैं। जहां अर्जिका का प्रभाव है वहां सम्पूर्ण जैन संघ ही नहीं है, इस हालत में स्त्रीदीक्षा भी अनिवार्य हो जाती है । दिगम्बर- इसमें तो जरा सी शंका नहीं है कि स्त्रदीक्षा सिद्ध है तो स्त्री मुक्ति भी सिद्ध है । ऊपर का अनुसन्धान स्त्री दीक्षा के पक्ष में है। किन्तु इस विषय में दिगम्बर शास्त्रों में साफ २ उल्लेख क्या है ! वह स्पष्ट कर देना चाहिये । जैन – दि० शास्त्र स्त्रदीक्षा और स्त्रीमुक्ति को स्वीकार करते हैं । कतिपय प्रमाण निम्न प्रकार है : --- दिगम्बर प्रथामानुयोग शास्त्रों के प्रमाण१- मन्त्रश्विरामात्य पुरोहितानां पुरप्रधानर्द्धिमतां गृहिण्यः । नृपाङ्गनाभिः सुगति प्रियाभिः, दिदीक्षिरे ताभिरमा तरुण्यः ( जटाचार्य कृत वरांग चरित म० ३० श्लो० ६५ स० ३१ श्लो ११३ ) २ - भरतस्यानुजा ब्राह्मी, दीक्षित्वा गुर्वनुग्रहात् । गणिनपद मार्याणां सा भेजे पूजितामरैः ।। १७५ ।।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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