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________________ [१९९ माने स्त्री मोक्ष में जाय, इस सिध्धति में तनिक भी शंका नहीं है। दिगम्बर-असल में तो स्त्री जिनेश्वर देव की अभिषेक श्रादि पूजा भी नहीं कर सकती है। जैन-अनेकान्त दर्शन ऐसा संकुचित नहीं है कि जिममें ईश्वर की पूजा के लिये भी पुरुष ही ठेकेदार हो। भूलना नहीं चाहिये कि तीर्थकर भगवान अवेदी हैं वीतराग हैं पतित पावन है मरद और जनाना उनके पुत्र पुत्री हैं इनके सार्ष से उनको किसी भी प्रकार का वेदोदय नहीं होता. है, अतः पुरुष और स्त्री तीर्थकरदेव की सब तरह की पूजा कर सकते है करते हैं। तीर्थकर की प्रतिमा लाखों के मन्दिर यारथ में बैठाने से सराग प्रतिमा नहीं मानी जाती है एवं स्त्री के स्पर्श से भी सराग नहीं मानी जाती है। दिगम्बर शास्त्र भी स्त्री के लिये जिन पूजा बताते हैं। जैसा कि पूर्वमष्टान्हिकं भक्त्या, देव्यः कृत्वा महामहम् । प्रारब्धा जिनपूजार्थ. विशुद्धन्द्रियगोचराः ॥१४० ॥ चारुभिः पंचवर्णैश्च, ध्वजमाल्यानुलेपनैः। दीपैश्च बलिभिश्चूर्णैः पूजां चक्रुर्मुदान्विताः ॥ १४१॥ (भा० जटासिंह नन्दि कृत वसंग चरित अ० १५ पृ. १४०) उपोपविष्टा प्रभुनैव सार्द्ध । (वरांग चरित्र स० २३ श्लो० ७१, पृ० २२७ ) कियत् काले गते कन्या, आसाद्य जिनमन्दिरम् । सपर्या महता चक्रुः मनोवाक्काय शुद्धितः ॥ ६ ॥ तीन शूद्र कन्यानों ने पूजा की ( गौतम चरिः अधि ।।.
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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