SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (मूलाचार, परिच्छेद १२, गाथा १९०) वैमानिक जीव वहां से च्यवन पाकर शलाका पुरुष बन सकता है मगर अनुत्तर विमान से आया हुआ जीव सीर्फ वासुंदव हो सकता नहीं है। प्रागतिकी कैसी विचित्र घटना है ? ( मूलाचार परिच्छेद १२, गाथा १२६, १३८ से १४१) इस प्रकार गति की असाम्यता के अनेक दृष्टांत शास्त्रो में अंकित हैं, वास्तव में गतिप्राप्ति की समानता नहीं पानी जाती है। अतएव स्त्री सातवे नरक पाने में असमर्थ होने पर भी मोक्षको पा सकती है। दिगम्बर-वासुदेव और प्रति वासुदेव शुद्ध अध्यवसाय के न होने के कारण मोक्ष पाने में असमर्थ हैं. भोगभूमि के युगलिक अशुद्ध अध्यवसाय के अभाव से नरक पाने में असमर्थ हैं, और मत्स्य शक्तिवान होने पर भी गति और शरीरादि भेद के कारण शुद्ध अध्यवसाय की अंतिम सीमा को नहीं पहुँच सकता है अतः मोक्ष पान में असमर्थ है, किन्तु स्त्री मोक्ष पाने में समर्थ है तो सातवी नरक पाने में असमर्थ क्यों है ? जैन-जैसे वासुदेव आदि में शुद्ध अध्यवसाय का अभाव है, युगलिक में अशुद्ध अध्यवसाय का अभाव है, पत्स्य में मोक्ष के. योग्य शुद्ध अध्यवसाय का अभाव है वैसे ही अबला में स्त्री शरीर और मातृत्व होने के कारण सातवें नरक के योग्य अशुद्ध अध्यवसाय का अभाव है। वह चाहे जितनी क्रूर बनें, मगर पुरुष की समता नहीं कर सकती है। वासुदेव मत्स्य वगैरह अशुद्ध अध्यय. साय की आखिरी सीमा तक पहुँच जाते है । अतः वे सातवें नरक तक जाते हैं, किन्तु शुद्ध अध्यवसाय की सीमा तक नही जासकते हैं यानी मोक्ष में नहीं जा सकते हैं। वैसे हा स्त्री शुद्ध अध्यवसाय
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy