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________________ [ ९. ] ब्राह्मण धर्म की पूरी छाप लगी हुई मालूम होती है, इसलिये उन्होंने ( दिगम्बरी प्राचार्यों ने ) शूद्रों से घृणा, आचमन आदि को जैनियों में भी रखना चाहा है। (६० परमेष्ठीदास जैन न्यायतीर्थकृत चर्चासागर समीक्षा पृ० १०५१) वस्तुतः दिगम्बर समाज में शूद्रमुक्ति के निषेध के लिये जो नैमित्तिक व्यवहार था उसको, बादके विद्वान् और मास करके भाषा टीकाकार और ब्राह्मणीय प्रभाव से प्रभावित ब्रह्मचारी वगैरहों ने एक जिनाशा रूप बना लिया। परमार्थ से जैनदर्शन में शूद्रमुक्ति की मना नहीं है। दिगम्बर--श्वेताम्बर बाहुबली को अनार्य मानते हैं। जैन--यह झूठ बात है। कोई भी जैन शास्त्र बाहुबली को अनार्य नहीं मानता है। काल के प्रभाव से कर्मभूमि और अकर्म: भूमिका परिवर्तन होता है । वैसे ही आर्यभूमि और यवनभूमि का परिवर्तन हो सकता है। वास्तव में बाहुबली यवन नहीं था, और वह भूमि भी यवनभूमि नहीं थी। बाहुबली की राजधानी के खंडहर संभवतः रावलपिंडी से करीब २० मील उत्तर में टक्सि. ला के नाम से विद्यमान है। दिगम्बर-चौथे आरे में आर्य भूमि में म्लेच्छों का निवास नहीं माना जाता है। जैन-यह आपकी मान्यता कल्पना मात्र है। दिगम्बर विद्वान तो यहां चौथे भारे में म्लेच्छों का होना मानते हैं। प्रमाण देखिये। १-चारित्रसार में खदिर भील और समाधिगुप्त मुनि का. अधिकार है।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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