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________________ ८० : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन (क) सूती वस्त्र __कपास, सन, बाँस, अतसी आदि पौधों के रेशों से सूती वस्त्र निर्मित होते थे। बृहत्कल्पभाष्य में सूती कपड़ा बनाने की विधि का वर्णन करते हुये कहा गया है कि "सेडुग" (कपास) को औटकर बीज रहित किया जाता था। फिर धुनकी ( पीजनी ) से धुनकर ( पीजकर ) धुनी हुई (पूनी) रुई तैयार की जाती थी। "नालब" उपकरण की सहायता से सूत को भूमि पर फैलाकर आड़ा-तिरछा करके ताना बुना जाता था, फिर "कडजोगी" (वस्त्र बुनने की खड्डी, से वस्त्र तैयार किया जाता था। नन्तकशाला में अर्थात् जहाँ जलाहे वस्त्र बनते थे, भाड़े पर श्रमिक भी रखे जाते थे। जैन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि सूत प्रायः स्त्रियाँ कातती थीं। बृहत्कल्पभाष्य में एक ऐसी वृद्धा का उल्लेख है जो मोटा सूत काततो थी।५ जैन साधुओं को कपास ओटती हुई स्त्री से भिक्षा लेने का निषेध किया गया था । जातककथा में भी स्त्रियों द्वारा महीन सूत कातने के वर्णन आये हैं । कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी राज्य के कारखानों में विधवाओं, अपाहिजों, भिक्षुणियों, वृद्ध, राजपरिचारिकाओं तथा दासियों द्वारा सूत कातने का उल्लेख है। निशीथचणि से ज्ञात होता है कि दुकूल वस्त्र निर्मित करने के लिये दुकूल वृक्ष की छाल को ओखली में पानी के साथ कूटा जाता था, फिर उससे सूत तैयार किया जाता था। अंसुय (अंशुक) १. निशीथचूर्णि भाग २ गाथा ६४५ २. सेडुय सए पिंजिय, येलु गाहाणे य-बृहत्कल्पभाष्य भाग ३ गाथा २९९६ निशीथचूणि भाग २ गाथा १९९२ ३. कडजोगि एक्कओ वा, असईए नालबद्धसहिओ वा निप्काए उवगरणं, उभओपक्खस्स पाओग्गं -बृहत्कल्पभाष्य भाग ३ गाथा २९९७ ४. जैन, जगदीश चन्द्र -प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० २०५ ५. बृहत्कल्पभाष्य, भाग १ गाथा १७१ ६. पिंडनियुक्ति, गाथा ६०५ ७. महोवसन्तरजातक, आनन्द कौसल्यायन, जातककथा, ६/५४२ ८. कौटिलीय अर्थशास्त्र, २/२३/४० दुगल्लो रुक्खो तस्स वागो धेते उद्खले कुहिज्ज ति निशीथचूणि, भाग २, पृष्ठ ३९९
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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