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________________ ७० : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन ओर विशेष ध्यान दिया जाता था । पशुओं के चारे के लिये राज्य की ओर से प्रायः प्रत्येक गाँव की बाह्य सीमा पर चरागाह बनाये जाते थे ।' कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी ऊसर भूमि पर चरागाह बनाने का उल्लेख है। आचारांग में उल्लेख है कि सुलभता के अनुसार पशुओं को चरागाह बदल-बदल कर चराया जाता था। जंगलों में घास के लिये सुरक्षित भूमि पर जैन साधुओं को यत्नपूर्वक चलने का निर्देश दिया गया है । । पशु और उनको चरागाहें राजकीय आय की साधन थीं। डा० जगदीश चन्द्र जैन ने आवश्यकवृत्ति के आधार पर कृषि सम्बन्धी १८ प्रकार के करों का उल्लेख किया है। जिनमें पशु कर और चरागाह पर लगने वाला "जंघाकर" भी था। कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्ययुग में पशु और चरागाह की व्यवस्था के लिये 'गो-अध्यक्ष' और "विवीताध्यक्ष" नामक अधिकारी नियुक्त थे।" जो राज्य के पशुओं की देखभाल करवाते थे और राज्य के लिये पशु-कर और चरागाह-कर एकत्रित करते थे। प्रश्नव्याकरण से ज्ञात होता है कि पशुओं को गर्म लोहे से चिह्नित कर उनकी पूँछ, कान आदि छेदित कर और उनके वर्गों के आधार पर उनका पंजीकरण कराया जाता था।६ पोषित पशुओं के रोगों के निदान और उनकी चिकित्सा की परम्परा अति प्राचीन है। अशोक ने पशुओं के लिये चिकित्सालय और औषधालय खुलवाये । निशीथणि से ज्ञात होता है कि वैद्य ने एक सिंह की रुग्ण आँखों की चिकित्सा अंजन लगा १. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ४, गाथा ३३२३ २. अकृष्यायाभूमौ पशुवयो विवीतानि प्रयच्छेत् । ___ कौटिलीय अर्थशास्त्र, २/२/२० ३. आचारांग २/३/३/१२७; बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, गाथा ३३२३; आवश्यकचूणि भाग १, पृ० २९६ ४. जैन जगदीश चन्द्र, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ ११२ १. कौटिलीय अर्थशास्त्र, २/२९/४६, २/३५/५३ ६. प्रश्नव्याकरण १/१२ संघदासगणि-वसुदेवहिण्डी, भाग २, पृ० २९७ ७. प्रियदर्शी अशोक का द्वितीय लेख गिरनार, ए० के० नारायण, प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह, पृष्ठ ५
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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