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________________ तृतीय अध्याय : ६५ करने के उल्लेख आये हैं ।' कृषि और यातायात के लिये बैलों को बधिया किया जाता था । स्वस्थ पशुओं की प्रचुरता थी । गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और ऊंटनी दूध देने वाले पशु थे । दुग्ध से दधि, नवनीत, घृत और तक्र की प्राप्ति होती थी; इन्हें गोरस कहा जाता था जो पौष्टिक भोजन माना जाता था । जिस स्थान पर गौ आदि का दोहन किया जाता था, उसे “दोहण वाडग” ( दुग्धशाला ) कहा जाता था ।" 'दोहणवाडग' गाँव के बाहर होते थे वहाँ स्त्री और पुरुष दोनों काम करते थे । आज की ही भाँति मृतवत्सा गाय का दूध निकालने के लिये उसके पाँव बाँध दिये जाते थे या छल से दूसरा बछड़ा लाकर उसका दोहन किया जाता था । ৺ उत्सवायोजनों के अवसर पर दुग्ध की माँग बढ़ जाती थी । बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि एक ग्वाले ने यह सोचकर कि "संखड़ी” ( विशेष मेला - भोज ) वाले दिन दुग्ध का अधिक मूल्य प्राप्त होगा और वह एक साथ सारा दुग्ध लाभ सहित बेचेगा । उसने दस दिन पूर्व से ही गाय का दोहन बन्द कर दिया । ग्वाले दिनभर गायों को चरागाहों में चराते और सूर्यास्त के पूर्व वापस लाते थे । बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि एक बार ग्वालों के एक गाँव में ग्रामस्वामो पधारे और गाँव के मन्दिर में ठहरे। उनके सम्मान में गाँव के रास्ते गोबर और गोमूत्र से गन्दे न हो जायँ इस आशंका से गायों को पूरी रात गाँव के बाहर रखा गया । फलतः सभी सवत्सा गायें विकल रहीं । ग्वाले गायों को चरागाहों तक ले जाने और वहाँ से ले १. बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १२६८ २. उपासकदशांग १ / ३८; प्रश्नव्याकरण २ / १३ ३. “खीराणि पंच गावी महिसो अय एलय उट्टीणं च ।" निशीथचूर्णि भाग २, गाथा १५९३ ४. दुद्धं दहियं णवणीयं सप्पि तक्कं च एते पंच दव्त्रा निशीथचूर्णि भाग २, गाथा १९९९; बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, गाथा ३५९७ ५. वही भाग ३, गाथा ३५६७, भाग २, गाथा ११९९ ६. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ४, गाथा ११९९ ७. प्रश्नव्याकरण, १/११ ८. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाया १५९१ ९. वही, भाग २, गाथा २२०३ ५
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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