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________________ ५० : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन कलिंग के राजा खारवेल ने प्रभूत धन व्यय करके तनसुली से नहर निकलवाई थी जो सिंचाई और आवागमन की दृष्टि से बहुत उपयोगी सिद्ध हुई थी । कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार सिंचाई का प्रबन्ध करने वाले कृषकों को राज्य प्रोत्साहन देता था । अगर कोई कृषक सिंचाई के लिए नये सीमाबंध बनाता था तो पाँच साल के लिए उसे कर मुक्त कर दिया जाता था और यदि टूटे-फूटे कुएँ की मरम्मत करके उसे सिंचाई योग्य बनाता था तो चार साल के लिए और अगर बने हुए साधनों को सुधारता था तो उसे तीन साल के लिए कर मुक्त कर दिया जाता था । इससे प्रतीत होता है कि राज्य सिंचाई कर भी लेता था पर जैनग्रन्थों में सिंचाई कर का उल्लेख नहीं हुआ है । खेतों की सुरक्षा जानवरों से फसलों की सुरक्षा के लिए भाँति-भाँति के उपाय किये जाते थे । धनवान् कृषक खेतों की रखवाली हेतु रक्षक -पुरुष नियुक्त करते थे । बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि एक कृषक ने यव के खेत की रखवाली के लिए “खेत्तपाल" ( क्षेत्रपाल) की नियुक्ति की थी। जातक ग्रन्थों में भी खेतों की रक्षा हेतु रक्षक पुरुष नियुक्त करने के उदाहरण मिलते हैं । शालिकेदार जातक के अनुसार एक ब्राह्मण ने शालि के खेत की रक्षा हेतु रक्षक -पुरुष नियुक्त किया था, जो खेत में ही कुटी बनाकर रखवाली करता था । धान्य के खेतों की जानवरों से रक्षा करने के लिए बाड़ बनाये जाते थे ।" बृहत्कल्पभाष्य से भी ज्ञात होता है कि खेतों के चारों ओर काँटेदार बाड़ लगायी जाती थी या खाई खोद दी जाती थो । जानवरों को भगाने के लिए लाठी और पत्थरों का प्रयोग किया जाता था । ' उक्त भाष्य के अनुसार किसी कुटुम्बी ने गन्ना लगाया था लेकिन रक्षा के लिए न तो काँटेदार बाढ़ ही लगाई, न खाई खोदी और १. "खारवेल का हाथीगुफा गुहा - अभिलेख, पंक्ति ६ वही (२), पृष्ठ ६७ २. तटाक सेतु बन्धानां नव प्रवर्तने पाञ्चवर्षिकाः परिहारः भवनोत्सृष्टानां कौटिलीय अर्थशास्त्र ३/९/५१ चातुर्वर्षिकः समुपारूढानां त्रिवर्षिकः । 1 ३. बृहत्कल्पभाष्य भाग २ गाथा ११५६ ४. शालिकेदार जातक आनन्द कौसल्यायन, जातककथा ४/४८० ५. " वाडिपरिक्खेव करेति' ज्ञाताधर्मकथांग ७/१२ ६. बृहत्कल्पभाष्य भाग १ गाथा ७२२, भाग १ गाथा ७७
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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