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________________ ४८ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन कोलिय जातियों ने मिलकर रोहिणी नदी पर बाँध बनाया था और उस जल से दोनों जातियां अपने खेत सींचती थीं। सिंचाई के लिये कुंओं और तालाबों का प्रयोग किया जाता था। गुप्तकाल के विश्ववर्मन के गंधार प्रस्तर-लेख से ज्ञात होता है कि विश्ववर्मन ने नदी तट पर बसे नगर में सिंचाई के लिये कूपों और तड़ागों का निर्माण करवाया । नदियों से छोटीछोटी नहरें निकाली जाती थीं। तोसलि निवासी वर्षा के अभाव में नदियों तथा नहरों के पानी से खेत सींचते थे ।२ जैन साधुओं के लिए पानी के उद्गमस्थानों, तालाबों तथा खेतों की ओर जाने वाली पानी की नालियों पर मल-मूत्र त्याग करना वजित था । प्रायः कृषक सिंचाई हेतु पानी को चोरी भी कर लेते थे। निशीथचणि में एक ऐसे किसान का वर्णन है जो चुपके से दूसरे किसान की बारी पर अपने खेत में पानी ले लेता था।" इसी प्रकार एक दूसरे कृषक द्वारा दूसरे के खेत को जाने वाली नाली को लकड़ी, पत्तों, मिट्टो आदि से बाधित कर पानी का प्रवाह अपने खेत की ओर मोड़ लेने का उल्लेख है। वसुदेवहिण्डी के अनुसार उग्रसेन का कुटुम्बी पुरुष रात में खेतों पर मेड़ बाँधकर पानी देता था। मेरुग्रामणी ने उसकी मेड़ तोड़कर अपने खेतों में पानी ले लिया । उग्रसेन ने राज्याधिकारियों से इसकी शिकायत की। अपराध सिद्ध होने पर राजा ने मेरुग्रामणी को दण्डित किया। पानी की चोरी राजकीय अपराध था। इसलिए ग्रामणी होने पर भी मेरु को अपने अपराध के लिए दण्ड भुगतना पड़ा। भिन्न-भिन्न देशों में १. विश्ववर्मन का गंधार प्रस्तर अभिलेख, फ्लीट, जान फेथफुल, प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह, पृ० ९६ २, "आणुग जंगल देसे, वासेण विणा वि तोसलिग्गहणं । बृहत्कल्पभाष्य भाग २। गाथा १०६१ ३, "ओछांययणेस या सेयणवहेसि" आचारांग २।१०।१६६ ४. "करिसगा वारगेण सारिणीए खेत्तादी पज्जेंति" निशीथचूणि भाग १। गाथा ३२९ ५. "अण्णस्स वारए अण्णावदेसा पादेण णिक्क भेत्तूण अप्पणो खेत्ते पाणियं छुभति । वही ६. वही ४।६६०२ ७. संधदासगणि-वसुदेवहिण्डो, १/२९५
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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