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________________ १९४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन कौमुदी-उत्सव और मदनोत्सव का उल्लेख है जब स्त्री-पुरुष संगीत के द्वारा मनोरंजन करके मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करते थे। उत्सवायोजनों में जनता के साथ राज्य के भी सक्रिय सहयोग के प्रमाण उपलब्ध होते हैं। गायन, वादन और नृत्य से भी मनोरंजन किया जाता था। संगीत-निपुण नर्तकियाँ सुन्दर नृत्य प्रस्तुत करती थीं। नाटक भी मनोविनोद के स्वस्थ साधन थे । राजप्रश्नोय में बत्तीस प्रकार के नाटकों का उल्लेख हुआ है। ___ मनोरंजन के लिये पशु-पक्षियों को लड़ाया जाता था । जैन ग्रंथों में महिष-युद्ध, कुक्कुट-युद्ध और मयूर-युद्ध आदि का उल्लेख मिलता है। वसुदेवहिण्डी से ज्ञात होता है कि हजारों सिक्कों की शर्ते लगाकर कुक्कुटों का युद्ध करवाया जाता था।६ दशवैकालिकचूर्णि में बुद्धिल्ल और सागरदत्त नाम के श्रेष्ठिपूत्रों का उल्लेख हुआ है, जो एक लाख मुद्राओं की बाजी लगाकर कुक्कुटों का युद्ध करवाते थे। समाज में द्यूतक्रीड़ा का भी प्रचलन था। वसुदेवहिण्डो से ज्ञात होता है कि धनवान श्रेष्ठियों के पुत्र य त से अपना मनोरंजन करते थे। विपाकसूत्र में द्यूतगृहों का भी उल्लेख मिलता है। प्रायः गाँव के बाहर खण्डहर और देवकुल जुए के अड्डे होते थे जहाँ पासों से घ्त खेला जाता था। इसके अतिरिक्त कन्दुकक्रीड़ा, मद्यपान, झूला और जलक्रीड़ा भी मनोरंजन के साधन थे । राजाओं के व्यस्त जीवन में आखेट मनोरंजन का साधन १. उत्तराध्ययनचूणि, ४/२२१ २. वही, ४/२२१ ३. राजप्रश्नीय सूत्र ९७ ४. ज्ञाताधर्मकथांग, १/७६ ५. राजप्रश्नीय सूत्र १५ ६. ज्ञःताधर्मकथांग ३/३३; संघदास गणि, वसुदेवहिण्डी, भाग २/ पृ० २८९ ७. दशवैकालिकचूणि, पृ० २६९ ८. सघदासगणि, वसुदेव हिण्डी भाग २ पृ० ३०९ ९. विपाकसूत्र, २/९ १०. देवकुलकादिसु जूयादिपमत्तो"-निशीथचूणि भाग ३ गाथा ३४९९ ११. दशवकालिक सूत्र, ३/४ १२. गेदगादिसु रमंते मज्जपान अंदोलगादिसु ललेते जलमध्ये क्रीड़ा, निशीथचूणि भाग ३ गाथा ४१३७
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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