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________________ १९० : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन किये जाने का उल्लेख है ग्रीष्मकाल में कषाय रंग के सुखद वस्त्र, शीतकाल में लाल रंग के मोटे वस्त्र और वर्षाकाल में कंकुम से रंगे हल्के वस्त्र पहने जाते थे ।' शीतकाल में भेड़, मृग और ऊँट की बालों से बने ऊनी वस्त्र पहने जाते थे। कपड़ों की विविध रंगों से रंगने, सुगन्धित पदार्थों से सुवासित करने और स्वर्णतारों से सज्जित करने के प्रसंग आगमकाल की आर्थिक सम्पन्नता की ओर संकेत करते हैं। ___समाज में सभी वर्गों के स्त्री-पुरुष समानतः आभूषणों से अपने को अलंकृत करते थे। आभूषण सोने, चाँदी, मणि-मुक्ताओं और रत्नों से बनाये जाते थे। स्त्रियाँ कण्ठ में सुन्दर हार, कानों में कुण्डल, हाथों में कड़े, अंगुलियों में अंगठियाँ, कमर में कमरबंध और पैरों में नूपुर पहनती थीं।" श्रेणिकपुत्र मेघकुमार को दीक्षोत्सव के समय हार, अर्धहार, एकावली, रत्नावलो, प्रलम्ब, पाद, त्रुटित, केयूर, कटिसूत्र, कुण्डल, मुद्रिकायें और रत्न-जड़ित मुकुट पहनाया गया था ।' साज-सज्जा में पुरुषों का भी बड़ा महत्त्व था । ज्ञाताधर्मकथांग में स्त्रियों के फूलों के आभूषण पहनने के उल्लेख आये हैं। निशीथचर्णि से ज्ञात होत है कि पाँच रंग के सुगन्धित पुष्पों की मालायें धारण की जाती थीं। पर्यों तथा उत्सवों के अवसर पर फूलों की बड़ी आवश्यकता पड़ती थी इसलिये फूल-मालाओं का मूल्य बढ़ जाता था। शरीर को सजाने-संवारने के लिये विविध प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग किया जाता था। आचारांग से सूचित होता है कि चन्दन, कपूर और लोध्र के विलेपनों १. आवश्यकचूणि, भाग २, पृ० १८१ २. आचारांग, २/५/१/१४५ ३. वही, २/५/१/१४४ ; बृहत्कल्पभाष्य, भाग ३, गाथा ३००१ ४. वही, २/२/१/७० ५. भगवतीसूत्र, ९/३/३३ ६. ज्ञाताधर्मकथांग, १/१२८ ७. वही, ८/५७ ; निशीथचूर्णि, भाग २ गाथा २२८७ ८. निशीथचूणि, भाग २ गाथा २२८७ ९. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २ गाथा १५९२
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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