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________________ १८२ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन राज्य के न्यायालयों में जाते थे। वसुदेवहिण्डी में ही एक ग्रामणी का उल्लेख हुआ है जो रात को चोरी से अपने खेतों में पानी दे देता था उसके विरुद्ध साक्ष्य मिलने पर और दोष सिद्ध हो जाने पर उसे दण्डित किया गया था। एक मृतक की संपत्ति पर अधिकार हेतु एक ही पुत्र को अपना बताने वाली दो स्त्रियों का विवाद राजसभा में गया था । आवश्यकचूर्णि से ज्ञात होता है कि करकंडु और ब्राह्मण-पुत्र में झगड़ा हो गया था दोनों न्याय हेतु राजकुल में गये थे। विपाकसूत्र में उल्लेख है कि अपराध न स्वीकार करने पर अभियुक्तों को यंत्रणायें दी जाती थीं और अपराध की गम्भीरता के अनुसार दण्डित किया जाता था। राज्य के न्यायालयों में न्यायिक प्रक्रिया, कारावासों की व्यवस्था, छोटे-बड़े अधिकारियों के वेतन पर राज्य का बहुत सा धन व्यय होता था । अन्तःपुर-व्यवस्था पर व्यय ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में उत्तरी भारत में एकतंत्रीय राज्य स्थापित हो चुके थे। यहाँ राजाओं का जीवन बड़ा ऐश्वर्यशाली और विलासमय था । भव्य अंतःपुर, उत्तम यान-वाहन, बहुमूल्य वस्त्राभूषण एवं साज-शृगार उनके ऐश्वर्य के प्रतीक थे । उनकी सेवा में दास-दासी नियुक्त थे। उनके विशाल अन्तःपुर पर राज्य का अत्यधिक धन व्यय होता था। राजप्रश्नीय से ज्ञात होता है कि कैकयार्ध का राजा प्रदेशी राजकीय आय का ११४ भाग अन्तःपुर के रख-रखाव पर व्यय करता था। निशीथणि में उल्लेख है कि हेमपुर के राजकुमार के अन्तःपुर में ५०० स्त्रियां थीं । निश्चय ही उनके भरण-पोषण हेतु अत्यधिक धन व्यय किया जाता होगा। इस प्रकार राजकीय आय का बहुत बड़ा भाग अन्तःपुर के ऊपर ही व्यय हो जाता था। १. वसुदेवहिण्डी भाग १, पृ० २९५ २. वही, ३. वही, ४. आवश्यकचूणि, भाग २, पृ० २०६ ५. विपाकसूत्र, ६/३ ६. राजप्रश्नीयसूत्र ८३ ७. निशीथचूणि भाग ३ गाथा ३५७५
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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