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________________ सप्तम अध्याय : १७५ सुरक्षा के बदले म्लेच्छ शासक को निश्चित द्रव्य कर के रूप में भेजती थी।' आवश्य कर्णि के अनुसार निश्चित द्रव्य न दे पाने के कारण क्रुद्ध राजा ने अपने सामन्त पर आक्रमण कर दिया था।२ कलिङ्गाधिपति खारवेल ने पराजित राजाओं से मणि, रत्न प्राप्त किये थे । गुप्तसम्राट समुद्रगुप्त ने तटवर्ती राज्यों को जीतकर उन्हें वहीं के राजाओं को लौटा दिया था। इस कृपा के बदले उसके अधीनस्थ राजा उसे कर तथा उपहार देते थे। अर्थ-दण्ड-दण्ड से प्राप्त धन भी राजकोश की वृद्धि का एक साधन था। राज्य के नियमों का उल्लंघन करने पर विभिन्न दण्डों में एक अर्थदण्ड भी था। अर्थदण्ड का आधार अपराधी के अपराध की गम्भीरता और लघुता होती थी। व्यवहारभाष्य से ज्ञात होता है कि किसी व्यक्ति को प्रहार करने या उसे गिराकर घायल करने वाले को १३, रुपक दण्ड स्वरूप देना पड़ता था।५ ज्ञाताधर्मकथांग में धन्ना नामक सार्थवाह की कथा वर्णित है जिसे राज्य कर न देने के अपराध में राज्यकर्मचारियों ने कारागार में बंद कर दिया। बाद में उसके सम्बन्धियों और मित्रों ने बहुमूल्य रत्न देकर उसे कारागार से मुक्त करवाया था ।६ मेघकुमार के जन्म के अवसर पर १० दिनों के लिये 'दण्डकर' बन्द कर दिये गये थे। इसी प्रकार भगवतीसूत्र से भी ज्ञात होता है कि राजा बल ने पुत्र-जन्म पर कर माफ कर दिये थे। नीतिवाक्यामृतम् में स्पष्ट कहा गया है कि राजा का अपनी प्रजा से दण्ड स्वरूप धन प्राप्त करने का उद्देश्य मात्र धन-संग्रह नहीं अपितु प्रजा की रक्षा होता है।' १. विमलसूरि पउमचरियं, ३४/३५ २. आवश्यकचूणि, भाग २, पृ० १९० ३. खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख पंक्ति १३; नारायण, ए० के० : प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह, भाग २, पृ० १५ ४. समुद्रगुप्त का प्रयाग स्तम्भलेख, पंक्ति २२; वही, पृ० १००. ५. 'स्मके पत्तकं दंडः उत्कृष्ट तु कलहे प्रवृत्ते अर्द्धत्रयोदश रुपको दंडः", व्यवहारभाष्यपीठिका १/६ ६. ज्ञाताधर्मकथांग २/५८ ७. वही, १/७८. ८. भगवती सूत्र, ११/११/४२ ९. सोमदेवसूरि, नीतिवाक्यामृतम् ९/३
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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