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________________ षष्ठ अध्याय : १५७ पर उसे लौटाना कठिन हो जाता था ।' पिडनियुक्ति में सौ रुपक ऋण पर ५ रुपक ब्याज लेने का उल्लेख है किन्तु यह ब्याज मासिक था या वार्षिक इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता।२ अनुमानतः यह ब्याजदर मासिक ही थी क्योंकि कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी १०० पण पर ५ पण मासिक ब्याज का उल्लेख हुआ है।३ व्यवहारभाष्य में वर्णित है कि एक व्यक्ति ने १०० कार्षापण ऋण लिया था वह अपने ऋण-दाता को एक काकिणी प्रतिमास ब्याज देकर और उसके घर काम करके शीघ्र ही ऋण-मुक्त हो गया। स्मृतियों में जाति के आधार पर ब्याज की विभिन्न दरों का उल्लेख है। मनुस्मृति में ब्राह्मणों से २ प्रतिशत, क्षत्रियों से ३ प्रतिशत, वैश्यों से ४ प्रतिशत और शूद्रों से ५ प्रतिशत, मासिक ब्याज लेने का विवरण है।कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में १०० पण पर १३ पण ब्याज निर्धारित किया है। किन्तु सामान्य व्यापारियों से पाँच पण, वन्य-मार्ग से व्यापार करने वालों से १० पण, समुद्रीमार्ग से व्यापार करने वालों से २० पण लेना भी उचित बताया है।' याज्ञवल्क्यस्मृति में भी गहन वनों में जाने वालों से १० प्रतिशत और समुद्री मार्गों से जाने वाले व्यापारियों से २० प्रतिशत ब्याज लेने का उल्लेख है। इससे प्रतीत होता है कि ब्याज की दर पूजी की सुरक्षा पर निर्भर करती थी। समुद्री मार्ग से व्यापार करने पर पूँजी नष्ट होने की आशंका रहती थी। अतएव ब्याज की दर भी ऊँची हो जाती थी। कभी-कभी ऋणदाता अपना धन वापस लेने हेतु अत्यन्त कठोरता का व्यवहार करते थे। ऋणग्राही द्वारा असमर्थता व्यक्त करने पर ऋणदाता ऋणी को अपशब्दों से अपमानित करते थे, पैरों और घूसों से प्रहार १. 'अपरिमियवड्ढीए वड्ढंतं बहु जायं' निशीथचूणि भाग ३, गाथा ४४८८ २. पिंडनियुक्ति गाथा ४७ ३. 'पच्चपण व्यावहारिकी मासवृद्धि' कौटिलीय अर्थशास्त्र ३/११/२ ४. व्यवहारभाष्य १०/३७२ ५. मनुस्मृति ८/१४२ ६. सपादपणाामासवृद्धिः पणशतस्य पञ्चपणा व्यावहारिकी दशपणा कान्तार काणाम् विंशतिपणासामुद्रीणाम्-कौटिलीय अर्थशास्त्र ३/११/३६ ७. याज्ञवल्क्यस्मृति व्यवहाराध्याय सूत्र ३८
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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