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________________ १५० : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन कौटिल्य ने भी अर्थशास्त्र में स्पष्ट कहा है कि श्रमिक का वेतन इतना हो, जिससे उसका और उसके परिवार का भरण-पोषण भलीभाँति हो सके । शुक्र सेवक के विविध वेतनमानों का उल्लेख किया है- प्रथम, उत्तम जिससे सेवक के सम्पूर्ण परिवार का भरण-पोषण हो सके, द्वितीय, मध्यम जिससे उसकी मौलिक आवश्यकतायें पूर्ण हो सकें और तृतीय, अधम जिससे मात्र एक ही व्यक्ति का पोषण हो सके । भृत्ति श्रमिक की कार्य क्षमता के अनुसार निश्चित की जाती थी, दायित्व पूर्ण कार्य करने वाले श्रमिकों भृत्ति अधिक होती थी और दूसरे श्रमिकों की कम । मनु ने साधारण कार्य करने वाले निकृष्ट दास या दासी के लिये प्रतिदिन एक पण, ६ मास में वस्त्र का एक जोड़ा और एक द्रोण धान्य और अपेक्षाकृत अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करने वाले उत्तम दास-दासी को ६ पण, अनाज और वस्त्र देने का विधान किया था । कौटिलीय अर्थशास्त्र में निम्नतम वेतन ६० पण और उच्चतम ४८०० पण वार्षिक देने का उल्लेख है । शुक्र ने तीन प्रकार से भृत्ति का निर्धारण किया है, 'कार्यमाना' अर्थात् कार्यानुसार दी जाने वाली, 'कालमाना' अर्थात् कालानुसार दी जाने वाली और 'कार्यकाला' कार्य और काल दोनों के अनुसार दी जाने वाली भृत्ति । " किन्तु निशोथचूर्णि में काल और कार्य के अनुसार भृत्ति निर्धारित की है । काल के अनुसार भृत्ति पाने वाले श्रमिक दैनिक वृत्ति पर काम करते थे, ऐसे श्रमिकों को 'दिवसभयगो' कहा जाता था और इनको सायंकाल भृत्ति प्राप्त होती थी जिससे वे भोजन-सामग्री आदि क्रय कर अपना निर्वाह करते थे । कुछ श्रमिक निश्चित समय तक काम कर अपनी भृत्ति अर्जित करते थे, ऐसे श्रमिकों को 'उच्चतभयगो' कहा जाता था । कुछ श्रमिक कार्य के अनुसार भृत्ति पाते थे, जैसे यात्रा के समय स्वामी के साथ जाने वाले श्रमिक की भृत्ति निश्चित कर ली जाती थी ऐसे श्रमिक को ' जत्ताभयगो' १. कौटिलीय अर्थशास्त्र ५ / ३ / ९१ २. शुक्रनीति २/३९९ ३. मनुस्मृति ७ / १२६ ४. कौटिलीय अर्थशास्त्र ५ / ३ / ९१ ५. शुक्रनीति २/३९५ ६. निशीथचूर्णि भाग ३, गाथा ३७१८, ३७१९
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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