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________________ १४४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन सिक्का भी ताँबे का ही रहा होगा ताँबे के सिक्के शीघ्र घिस जाते थे और कम मूल्य के भी थे । इसलिए इनको संचय नहीं किया जाता था। सर्वत्र सोने-चाँदी के सिक्कों को ही संचित करने के उल्लेख आये हैं। अन्य सिक्के __उक्त सिक्कों के अतिरिक्त छोटे सिक्कों के रूप में कौड़ियों का भी प्रयोग होता था। यह समुद्री जीव के शरीर का आवरण था । बृहत्कल्पभाष्य में इसे कवडुक कहा गया है।३ निशीथचर्णि से ज्ञात होता है कि लेनदेन में कवडुक का व्यवहार होता था। चीनी यात्री फाह्यान ने भारत में कौड़ियों का प्रयोग देखा था।" कौड़ी विनिमय के लिए एक छोटा सिक्का था। इसकी क्रयशक्ति न्यूनतम थी। उत्तरपुराण से ज्ञात होता है कि एक नैमित्तिक की पत्नी ने क्रोधित होकर कौड़ियों को फेंक दिया था, क्योंकि उसके पति ने अपने परिश्रम के प्रतिफल में कुछ कौड़ियाँ ही प्राप्त की थीं।' इसी प्रकार निशीथणि में 'भिन्नमाल' में प्रचलित चमड़े के सिक्के 'चम्मलात' का उल्लेख हुआ है। ___चाँदी के वतुलाकार और वर्गाकार सिक्के प्राप्त हुए हैं इन्हें मुद्रातत्वविदों ने चिह्निन या आहत सिक्के कहा है। विद्वानों के अनुसार सोने के सिक्के गुप्त काल में सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त 'प्रथम' ने निर्गत किए, । जिसका परवर्ती राजाओं ने अनुकरण किया था। सोने-चांदी के सिक्कों का मूल्य पारस्परिक अनुपात में निर्धारित होता था। लेकिन किस अनुपात में, इनका मूल्य-निर्धारण किया जाता था इसका जैन ग्रन्थों में कोई वर्णन नहीं मिलता है। निश्चय ही यह अनुपात भी धातुओं की उपलब्धि के अनुसार घटता-बढ़ता रहता होगा । ईसवी सन् १२० के नासिक गुहा लेख के अनुसार चाँदी के ७० हजार कार्षापण २ हजार सुवर्ण मुद्राओं के बराबर थे, अर्थात् ३५ कार्षापण का एक सुवर्ण था।" १. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २ गाथा १९६९ २. 'कवड्डगा से दिज्जंति' निशीथचूणि, भाग ३, गाथा ३०७० ३. करेंसी एण्ड एक्सचेंज इन ऐंशियंट इण्डिया, पृ० ४३ ४. उत्तरपुराण, पृष्ठ १५१ ५. जहाभिल्लमाले चम्मलातो निशीथचूणि, भाग ३, गाथा ३०७० ६. उपाध्याय, वसुदेव-प्राचीन भारतीय मुद्रायें, पृ० १४१ ७. मध्यकालीन नासिक गुहालेख पंक्ति ५ ए० के० नारायण-प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह २/३४
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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