SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शेखावाटी क्षेत्र के सांस्कृतिक विकास में व्यापारिक मार्गों का योगदान : (1) कोटा से मुल्तान कोटा-बूंदी-टॉक चूरू-बीकानेर पुगल- बुहाबलपुर-मुल्तान ।" (2) बीकानेर से दक्कन :- बीकानेर-नागौर मेड़ता बूंदी कोटा झालरापाटन उज्जैन- दक्कन।" - - (3) दिल्ली से अहमदाबाद :- दिल्ली भिवानी-राजगढ़ चूरू जाँउनू नागौर -जोधपुर-जालौर - सिरोही- पालनपुर - अहमदाबाद (18 डीडवाना-लॉन्चूरू (4) जयपुर से मुल्तान :लूणकरणसर-महाजन अनूपगढ़ बहावलपुर-मुल्तान " ( 5 ) जयपुर से सिंध :- जयपुर-बीकानेर पुगल-सिन्ध 120 जयपुर-साम्भर, / 395 - = इस तरह शेखावाटी क्षेत्र सहायक व्यापारिक मार्गो से मुल्तान, सिन्ध, काबुल, पंजाब, कश्मीर, दिल्ली, आगरा, गुजराज एवं मालवा से जुड़ा हुआ था। शेखावाटी के सहायक व्यापारिक मार्ग अन्य राज्यों के द्वारा प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों से जुड़े हुये थे यद्यपि ये मार्ग पक्के नहीं बने थे। अधिकांश कच्चे और टेढ़े-मेढ़े थे फिर भी वर्षा ऋतु को छोड़कर इन मार्गों पर आवागमन ज्यादा मुश्किल नहीं था। शेखावाटी के कुछ सहायक मार्ग जैसे : | (1) चिड़ावा झुन्झुनु फतेहपुर-सुजानगढ़-द्रोणाचार, मारवाड़। (2) चिड़ावा :- रेवाड़ी-भिवाड़ी-लुहारू-दिल्ली । : फतेहपुर- डीडवाना (3) गनेडी (4) फतेहपुर (5) गनेड़ी साम्भर-मालवा फतेहपुर - खण्डेला ( 6 ) हंग्सी से मालवा :- फतेहपुर-साम्भर । I इसी तरह रामगढ़, सेठान, फतेहपुर, थोई, रैवासा श्रीमाधोपुर मुख्य व्यापारिक केन्द्र थे। ऊँट इस इलाके का प्रमुख सवारी था। समूह में कतार लादकर इस इलाके के लोग डीडवाना से नमक भरकर नाभा, पटियाला, हिसार, रेवाडी, नारनौल तथा दिल्ली तक जाते थे पानीपत और सोनीपत के इलाकों से गुड़ व शक्कर ऊँटों द्वारा लाकर गांवों में बेची जाती थी परबतसर और पुष्कर के मेलों में ऊँटों को बेचने और खरीदने जाते थे। शेखावाटी क्षेत्र में तांबा उद्योग और इमारती पत्थर का उद्योग महत्वपूर्ण रहे है पीतल और तांबे के बर्तन, नीम का थाना और श्रीमाधोपुर में बनाये जाते है। रंगाई छपाई गैर बंधेज के लिए शेखावाटी क्षेत्र प्रसिद्ध है। दुपट्टा, साड़ी, पेचा, साफा, पीला, पोमचा, चूनडी, झुरा, धनक आदि की रंगाई और बंधाई कलात्मक होती है। जिसकी मांग देश देशान्तर में बनी रही है। सीकर, झुन्झुनु, बिसाऊ, नवलगढ़, श्रीमाधोपुर में यह कार्य आज भी बड़े पैमाने पर विद्यमान है। 18वीं और 19वीं शती में सूती ऊनी वस्त्र उद्योग भी बहुत थे। इसी तरह गोटा किनारी उद्योग, दरी, सलीता, टोकरियां, मिट्टी के बर्तन, मणिहारी सुनारी का काम भी गांवों और शहरों में होते रहे है रघुनाथगढ़, चिराणा, भोमा की पट्टियाँ मशहूर थी। छापोली के पत्थर की चक्की बनती है। खनिज पदार्थों में खेतड़ी की तांबे की खाने लीलाथोथा, अभ्रक, फिटकड़ी, गेरू की मिट्टी आदि मिलती है । शेखावाटी के नगरों की स्थापना के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था कि कोई सम्पन्न महाजन परिवार यहाँ आकर बसे ताकि व्यापार वाणिज्य बढ़े। इसका एक कारण शासकों की अपनी राजधानी को विकसित करने की दृढ इच्छा भी थी पैसे वाले महाजनों को यहाँ बसने के लिये आमन्त्रित किया जाता था यहाँ पर व्यापार 1 शुरू करने के लिये उन्हें कम पैसे या मुफ्त जमीन और करों में छूट दी जाती थी जैसे सीकर के रावराजा लक्ष्मणसिंह ने जब लक्ष्मणगढ़ को बसाया तो उन्होंने अनेक महाजनों को यहां बसने के लिये आमन्त्रित किया । |
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy