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________________ 376 / Jijrāsā पधारे थे, ने 64 भारतीय विद्याओं की पांडुलिपियों का चीनी में अनुवाद किया। गुणवृद्धि ने 100 भारतीय गल्प कथाओं का चीनी भाषा में अनुवाद किया। आप मध्यप्रदेश में उज्जैन नगर के रहने वाले थे। आपने चीन में भारत के विज्ञानवाद दर्शन का प्रचार-प्रसार किया। आपने चीन मे शे-लुन-सुंग अर्थात महायान संपरिग्रह शास्त्र पीठ की स्थापना किया था, पर बाद में इस संप्रदाय का वेनसांग द्वारा स्थापित धर्मलक्षण संप्रदाय में विलय हो गया। धर्मरुचि में भारतीय खगोलशास्त्र के कई ग्रन्थों का चीनी में अनुवाद किया। ज्ञानभद्र एवं यशोगुप्त ने पंचविद्या जिसमें भारतीय व्याकरण, उच्चारण शास्त्र, चिकित्सा, विज्ञान और तर्कशास्त्र सम्मिलित है, का चीनी भाषा में अनुवाद किया। ये सभी विद्वान छठी शताब्दी में चीन गए थे ___कुमारजीव नामक भारतीय दार्शनिक ने अपने दर्शन और साहित्य से चीन की जो सेवा की है, उसे भारत और चीन के वंशधर कभी नही भूल पायेंगे। आपके पिता एक विद्वान भारतीय थे। इन्होंने चीन के सीकियांग प्रांत के कुचा की राजकुमारी जीव से विवाह किया और 344 ई. में कुमारजीव का जन्म हुआ। आपकी शिक्षा-दीक्षा पश्चिमोत्तर भारत के गांधार और कपिशा में पूर्ण हुई। पिता की असामयिक मृत्यु हो गई और माँ आपको लेकर भारत आ गई। मॉ ने भारत के विभिन्न शिक्षा केन्द्रों में आपको पंचविद्या की शिक्षा दिलवाई। 12 वर्ष की उम्र में आप ने कई विद्वानों को शास्त्रार्थ मे पराजित किया था। सीकियांग के कुचा स्थान से आपने भारतीय धर्म संस्कृति और व्याकरण पर प्रवचन देना प्रारम्भ किया और चीन देश में लोकप्रिय होने लगे। चीनी मॉ भारतीय मूल के अपने पुत्र पर विमोहित थी। कुमारजीव को बंदी बनाकर चिनवंश के जनरल लु-कुआंग ने बहुत अपनानित किया। पर अगला सम्राट याओसिग ने कुमारजीव को मुक्त कराकर उन्हें अपनी राजधानी में ले आया। राजा ने राजकुमारी से कुमारजीव की शादी करा दी। कुमारजीव प्रतिभा संपन्न थे इन्होंने लगभग सात हजार संस्कृत के अध्यायों को चीनी भाषा में अनुवाद किया। इनमें अधिकांश पुस्तकें महायान शाखा माध्यमिक और योगाचार दर्शन की थी। इन पुस्तकों में सधर्मपुण्डरीक, विमलकीर्तिनिर्देश, वज्रछेदिक-प्रज्ञापारमितासूत्र, सुखावतीव्यूहसूत्र, सूत्रालंकारशास्त्र, एवं संयुक्तावदानसूत्र प्रमुख है। कुमार जीव एक उच्च कोटि के कवि भी थे। कुमार जीव के साथ ही भारत का षडदर्शन भी चीन पहुँचा। चीन के लोग भौतिकवादी और नीतिपरक थे, पर माध्यमिक और शून्यवाद के दर्शन ने भारतीय दार्शनिक प्रणाली को चीन में प्रत्यारोपित किया। जिसके फलस्वरूप चीन की दार्शनिक चेतना का कायाकल्प हो गया और सान लून तथा चेंग दार्शनिक पीठो का जन्म हुआ। कुमार जीव के शिष्यों मे शेंग चाओ एवं ताओ शेंग काफी प्रसिद्ध दार्शनिक हुए। कुमारजीव भारत चीन ऐतिहासिक रोमांस के विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न वंशधर थे। राजा ने उनका विवाह राजकुमारी से कराने के बाद भी उनके हर दैनदिनी कार्य की देखरेख के लिए अपूर्व सुंदरी परिचारिकाओं को इस पवित्र भाव से लगाया कि इस विलक्षण प्रतिभा और चीन की सुंदरियों के समागम से जो भी वंशधर जन्म लेगा वह चीन की सेवा करेगा और चीनी राष्ट्र महानता की ओर जायेगा।" राजा का वह निर्णय रंग लाया। कुमारजीव के वंशधर आगे के 200 वर्षों तक चीन के अनुवाद निदेशालय को संभालते रहे और कई भारतीय धार्मिक और लौकिक पुस्तकों का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। राजा द्वारा कुमारजीव के लिए स्थापित अनुवाद निदेशालय में आगे की शताब्दियों में हजारों अनुवादकों ने काम किया और 3000 भारतीय ग्रंथो का अनुवाद किया। इस अनुवादशाला से अनूदित पुस्तकों से अच्छा अनुवाद कोई और नहीं कर सका। कुमार जीव अन्त में अनूदित कृतियों की स्वंय परीक्षा करते थे उनकी अनुवादशाला में मध्य एशिया, चीन और भारत के विद्वान एक साथ काम करते थे। 413 ई. में कुमारजीव इस लोक से विदा हुए और मरने से पहले अपने अनुयायियों से कहा कि वे उनके
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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