SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 30 / Jijñāsā पाण्डे जी का मानना है कि भारतीय समाज की पहचान उसकी सांस्कृतिक परम्परा में है और इस परम्परा का स्थायी और मूल स्वर आध्यात्मिक अनुसंधान पर आधारित धार्मिक श्रद्धा है। इतिहास विवेचन इतिहास किसका होता है? इसके उत्तर में पांडे जी कहते हैं कि इतिहास संस्कृति से अनुप्राणित समाज का होता है। इस प्रक्रिया में प्रतिभावान महापुरूष ही पथ प्रदर्शक और तीर्थंकर बनते हैं जिस समाज की गति उसके सांस्कृतिक मूल्यों को चरितार्थ करने की दिशा में होती हैं, उस गति को प्रगति कहा जाता है। सांस्कृतिक परम्परा मूल्यों के उन्मेष, उनके अनुचिन्तनात्मक परामर्श, उनके संप्रेषण और तदुपयोगी संकेतों की रचना, उनकी साधना के लिए अपेक्षित संस्थाओं के निर्माण से बनती और बढ़ती है। संस्कृति मानो मूल्यों के प्रत्यक्षीकरण, कल्पना और प्रयोग को द्वंद्वात्मक परम्परा है, जिसमें मनुष्य अपनी संभावनाओं की उपलब्धि और उपलब्धियों की परीक्षा करता है। समाज के प्रवाहात्मक स्तर पर संस्कृति का सृजनात्मक स्तर आरोपित रहता है। इन दोनों के संश्लेषण से ऐतिहासिक प्रक्रिया निष्पन्न होती है। स्पष्ट ही ऐतिहासिक प्रक्रिया का अधिष्ठान एक विशिष्ट संस्कृति से अनुप्राणित समाज होता है। इस प्रकार के समाज को टॉयनबी सभ्यता कहते है। उनका यह कहना सर्वथा सही माना जा सकता है कि इतिहास सभ्यताओं का होता है। इसका अर्थ यह समझना चाहिए कि इतिहास सामाजिक स्तर पर अस्तित्व का अनुरक्षण और सांस्कृतिक स्तर पर आत्मानुसन्धान की संश्लिष्ट प्रक्रिया है, जिसका आश्रय एवं अधिष्ठान सभ्यता अथवा संस्कृति - सम्पन्न समाज है। पाण्डे जी का मानना है कि समाज के विवरण के साथ-साथ इतिहास में विशिष्ट व्यक्तियों के कृतित्व का विवरण भी आवश्यक है। इतिहास की प्रकिया में सामान्य व्यक्ति, समुदाय में अन्तर्भूत हो जाते हैं। उनकी जीवन-विधा एक सामान्य सरंचना और व्यवस्था के अनुसार समझी जा सकती है। असामान्य व्यक्ति इतिहास के अपूर्व सृजन के केन्द्र बिन्दु होते हैं। वे विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में पड़ने वाले महत्वपूर्ण नूतन परिवर्तनों का नेतृत्व करते हैं। पाण्डे जी के अनुसार इतिहास को समाज - विज्ञान की शाखा नहीं माना जा सकता, जैसा कि आजकल बहुत से विज्ञान मानते हैं। समाज विज्ञान के नियम ऐतिहासिक अध्ययन में सहायक हो सकते हैं, लेकिन इतिहास की पूर्ण व्याख्या नहीं कर सकते है। इसका कारण है। मनुष्य जीवन और स्वभाव की नितान्त और मौलिक ऐतिहासिकता। वैज्ञानिक और इतिहासकार की मूल समानता इस अर्थ में देखी जा सकती है कि दोनों का यथार्थता पर आग्रह है। ज्ञान यथार्थ है अथवा अयथार्थ, उसका निर्णय प्रमाणो से होता है इतिहास भी विज्ञान के समान प्रमाणाश्रित ज्ञान है। यही इतिहास की वैज्ञानिकता है। प्रोफेसर गोविन्द चन्द्र पाण्डे के चले जाने से भारत की आध्यात्मिक ऐतिहासिक परम्परा का एक पारखी मनीषी हमसे बिछड़ गया। बहरहाल, जितने भी मोती वह हमें दे गया, वे एक अनूठी सौगात हैं।
SR No.022812
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages272
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy