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________________ उत्तरउपनिवेशवाद और प्राच्यवाद: संकल्पना और स्वरूप / 171 और मशीनगन्स का उत्सवीकरण' - ए ग्रैंड सैलिब्रेशन ऑफ मशीन गन्स एंड कार्स है । " यानि उपभोक्तावाद एवं युद्ध आपस में नत्थी हैं, यह अमेरिकी अर्थशास्त्री अर्न्स्ट मेंडल भी स्वीकार करते हैं। इसलिए आज भूमंडलीकरण वैश्वीकरण, विश्वग्राम सूचना और संचार क्रांति का साम्राज्य बताकर प्रगति और विकास का मानदंड कहा जा रहा है वह वस्तुतः उन सबसे कहीं अधिक गहरे एवं महत्त्वपूर्ण उत्तरऔपनिवेशिक समाजों के यथार्थ की सर्वधा विकृत एवं मिथ्या प्रस्तुति होने के कारण 'आइडियोलॉजिकल है। इसलिए उसमें सच्चाई भी सिर के बल खड़ी है। दरअसल भूमंडलीकरण उत्तर औपनिवेशिक दौर में बहुराष्ट्रीय निगमों वाले पूँजीवाद की पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था का सच है। अब अगर पूँजी और प्रौद्योगिकी की दुनिया में अमेरिकी वर्चस्व होगा, तो भूमंडलीकरण का अर्थ अमेरिकीकरण होगा या नहीं? अमेरिका एवं दूसरे समृद्ध पूँजीवादी देश जिस तर्क से अमीर देशों की पूंजी, प्रौद्योगिकी एवं सेवा शर्तों का भूमंडलीकरण चाहते हैं, उसी तर्क से वे पश्चिम की उपभोक्तावादी जीवन शैली, मानमूल्यों और आदतों का भी भूमंडलीकरण चाहते हैं। यानि भूमंडलीकरण का मायने हैं, पश्चिमी वर्चस्व की स्वीकृति जो प्राच्यवाद का भी अपना दर्शन था। दूसरे शब्दों में, एक अर्थ व्यवस्था, एक संस्कृति एवं एक सर्वमान्य इतिहास इसे ही भूमंडलीकरण के प्रतिभावन उत्तराधिकारी वैश्विक संस्कृति बताते हैं। इतिहास, विचारधारा, कला, लेखक, साहित्य, सामाजिक जीवन में वर्गसंघर्ष एवं वर्ग, मार्क्सवाद, सामाजिक जनतंत्र, लोक कल्याणकारी राज्य, पुनर्जागरणकालीन विचारों एवं सामाजिक क्रांतियों की महागाथाओं की मृत्यु आदि विचारणा को फ्रेडरिक जेम्सन ने ठीक ही बहुराष्ट्रीय निगमों वाले पूँजीवाद का सांस्कृतिक तर्क कहा है। दरअसल संस्कृति के क्षेत्र में भूमंडलीकरण का हर रूख चाहे वह उसके पक्ष में हो या विपक्ष में, एक ही समय में दबे या प्रकट रूप में वही होगा, जो आज के बहुराष्ट्रीय निगमों वाले पूँजीवाद और उसके प्रति हमारे राजनीतिक दृष्टिकोण का होगा। टेगी एल्टन ने लिखा है "भूमंडलीकरण जिस संस्कृतिवाद को अपना राजनीतिक संरक्षण देता है वह पश्चिम का चोर दरवाजा है जिसका उपयोग वह सामराजी शक्तियों के विरुद्ध हर तरह के विरोध को दबाने और प्रभुत्वशाली पश्चिम की उठी हुई आँख को हमेशा सुरक्षा घेरे में रखने के लिए करता है। "20 भूमंडलीकरण सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के ऐसे रूप को प्रकट करता है, जो राष्ट्रों के आर-पार पारस्परिक मेल जोल से नयी वैश्विक साझा संस्कृति के निर्माण और विकास को नहीं बल्कि संस्कृतियों के दमन एवं उत्पीड़न के कारण वर्चस्वशाली संस्कृति के आक्रामक रूप को ही दर्शाता है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की मोटी चादर कमजोर राष्ट्रों की सांस्कृतिक स्वायत्तत्ता को वह या तो पूरी तरह से ढँक कर चेहरा विहीन अथवा निष्प्रभावी बना देती है या फिर उन्हें दबाकर उनके अस्तित्व को मिटा देती है। सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का सीधा अर्थ है, दुनिया के ज्ञान-विज्ञान के विकास को वर्चस्वशाली पश्चिम के अवदान की स्वीकृति तथा समुद्री यात्राओं, व्यापार, पनजन, सांस्कृतिक प्रभावों के विस्तार तथा ज्ञान और समझ के विकास में एशिया एवं अफ्रीकी देशों के योगदान का पूर्णतः निषेध अमर्त्य सेन ने पश्चिम के इस संकीर्णतावाद की कड़ी आलोचना की है और विश्व साहित्य, कला, गणित, ज्यामिति आदि के क्षेत्र में चीन, भारत, ईरान और अरब देशों के अतुलनीय योगदान की समीक्षा करते हुए लिखा है कि उसके बिना 'तो योरोप, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत ज्यादा गरीब बना रहता। 21 उन्होंने लिखा है, “देखा जाये तो विश्वीकरण हजारों वर्षो से संसार की प्रगति में योगदान करता रहा है।..... ये वैश्विक अन्तसंबंध दुनिया के अनेक देशों की उन्नति में बहुत योगदान करते रहते हैं और इस विश्वीकरण के अनेक कुछ ऐसे तत्व पश्चिम से बहुत दूर पाये गए हैं। साथ ही, हमें यह भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि विश्वीकरण के परिणाम अवश्य हैं जो साम्राज्यवाद से जुड़े है। विजयों का इतिहास, उपनिवेशी आधिपत्य, विदेशी शासन और इन सबके कारण विविध रूपों में विजित जनों के अपमान आज भी अनेक रूपों में प्रासंगिक हैं..."22 ..... औपनिवेशिक दुर्व्यवहार उत्तर औपनिवेशिक काल में भी पहले के औपनिवेशिक देशों की जनता की सामाजिक स्मृतियों में अब भी जीवित है। समाज के शरीर और आत्मा पर चोट करने वाले जातीय अपमान और नस्ली भेदभाव पश्चिम के विरोध का एक प्रमुख कारण है । औपनिवेशिक प्रताड़ना के विरुद्ध पश्चिम विरोध की धारणा का वस्तुगत आधार है। अफ्रीकी जनता पर शताब्दियों तक जिस तरह निरंकुश विदेशी शासन थोपा गया, वह बेहद क्रूर, अमानवीय एवं अपमानजनक था । इससे उनकी
SR No.022812
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages272
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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