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________________ 82 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना मनवंछि पुरवउ' इसके समर्थक प्रमाण हैं। इसमें मण्डलाकार नृत्य तथा पदगान किया जाता है। रास, रासक या रासा नाम से छन्द भी मिलता है। पश्चिमी भारत में यह विधा अधिक प्रसिद्ध थी। इसका मुख्य विषय है तीर्थंकर, साधु-साध्वी या श्रावक का चरित गान जिसने अपने त्याग-तपस्या से लोकजीवन को प्रभावित किया हो। आसिम का जीवदया रास, देल्हण का गय सुकुमाल रास, धर्म का मयणरेहारास, पाल्हण का आबूरास, विजयसेन सूरि का रेवंतगिरिरास, शालिभद्रसूरि का भरतेश्वर बाहुबलिरास, सुमतिगणि का नेमिरास विशेष उल्लेखनीय हैं। इनमें शालिभद्रसूरि ही नहीं बल्कि ये सभी आचार्य हिन्दी के आदिकालीन कवि के रूप में स्वीकार्य होना चाहिए। चउपइ - चउपइ छन्द में रचित प्रबन्ध रचना को चउपई या चौंपाई कहा जाता है। इसे चतुष्पादिका भी कहते हैं। जगडू की सम्यक्त्वमाइ चौपाइ, जयमंगलसूरि की महा. जन्माभिषेक चौपाई, धर्मसूरि की सुभद्रासती चतुष्पादिका, फेरु की युग प्रधान चतुष्पपादिका विनयचन्द्र कृत नेमिनाथ चतुष्पादिका और विजयभद्रकृत हंसराज वच्छराज चउपइ ऐसी ही रचनाएं हैं। चर्चरी - रास के समान चर्चरी भी नृत्य-गीत परक काव्य है। इसे तालनृत्य के साथ विशेष उत्सवों पर गाया जाता था। जिनदत्त सूरि कृत चर्चरी, सोलणुकृत चर्चरी विशेष उल्लेखनीय हैं। फागु, बेलि, बारहमासा और विवाहलो साहित्य -फागु का सम्बन्ध वसन्तागमन से है। जैन फागु का पर्यवसान शम में ही होता है। इसमें कवि अत्यन्त भक्ति विभोर और आध्यात्मिक सन्त-सा दिखाई देता है। इसमें कवि तीर्थंकर या आचार्य के प्रति समर्पित होकर
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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