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________________ 50 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना जगद्गुरु शंकराचार्य का उदय भारत के धार्मिक इतिहास में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। उनके प्रभाव से सोया हुआ ब्राह्मण धर्म फिर एक बार जाग उठा। उसे उबुद्ध देखकर विलासप्रिय महायानी बौद्धधर्म के पैर उखड़ गये। शास्त्रज्ञ विद्वानों में उनका नाम कन्ह हो गया। समाज के नैतिक पतन का कारण वाममार्गीय दूषित बौद्ध पद्धतियाँ ही थीं। अच्छा हुआ कि ११वीं शताब्दी के लगभग यवनों के प्रभाव से इन दूषित धर्मो के प्रति प्रतिक्रिया जाग्रत हो गयी और उत्तर भारत में आचरण प्रवण नाथपंथ का तथा दक्षिण में वैष्णव और लिंगायत आदि धर्मो का उदय हो गया, नहीं तो भारत और भी अधिक दीनावस्था को पहुंच गया होता। कबीर तथा उनके गुरु रामानन्द ने इस प्रतिक्रिया को और भी अधिक मूर्तरूप दिया। दूसरी धारा शास्त्रज्ञ आचार्यो की थी। इन आचार्यो का उदय शंकराचार्य की विचारधारा की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था। इन परवर्ती आचार्यो में रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य, माध्वाचार्य तथा बल्लभाचार्य प्रमुख हैं। शंकराचार्य अद्वैत वेदान्त के प्रधान प्रतिपादक माने जाते हैं। उन्होंने ज्ञान को अधिक महत्त्व दिया। मध्यकालीन प्रायः सभी सन्त शंकर और रामानुज दोनों से प्रभावित हुए हैं। मध्यकालीन सन्तों पर रामानुज की भक्ति और प्रपत्ति का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। माध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य और वल्लभाचार्य की छाप सगुणोपासक कवियों और भक्तों पर दिखाई पड़ती है। इन आचार्यों के क्रमशः द्वैत, द्वैताद्वैत और शुद्धाद्वैत सिद्धान्तों ने हिन्दी साहित्य को काफी प्रभावित किया है। ___ जैनधर्म भी इन परिस्थितियों में अप्रभावित नहीं रह सका। उसके भक्ति आन्दोलन में और भी तीव्रता आई। निष्कल और सकल रूप, निर्गुण और सगुण धारा समान रूप से प्रवाहित हुई। प्राचीन जैन
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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