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________________ 474 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना भंग। कहा होत पय पान कराये विष नहिं तजत भुजंग। कागहि कहा कपूर चुगाए स्वान न्हवाए गंग। सूरदास खलकारी कामरि, चढ़े न दूजौ अंग।। सूरसागर, पृ.१७६। १५३. बनारसीविलास, भाषासूक्त मुक्तावली, पृ.५०। १५४. कर कर सपत संगत रे भाई।। पान परत नर नरपत कर सौ तौ पाननि सौ कर आसनाइ।। चन्दन पास नींव चन्दन है काढ चढ़यौ लोह तरजाई। पारस परस कुघात कनक है बून्द उर्द्ध पदवी पाई।। करई तौवर संगति के फल मधुर मधुर सुर कर गाई। विष गुन करत संग औषध के ज्यौं बच खात मिटैं वाई।। दोष घटे प्रगटे गुन मनसा निरमल है तज चपलाई। द्यानत धन्न धन्न जिनके घट सत संगति सरधाई।। हिन्दी पद संग्रह, पृ.१३७। १५५. वही, पृ.१५५। १५६. वही, पृ.१५८-८६। १५७. देखौ स्वांति बून्द सीप मुख परी मोती होयः केलि में कपूर बांस मोहि बंसलोच ना। ईख में मधुर पुनि नीम में कटक रस, पन्नग के मुख परी होय प्रान मोचना।। अंबुज दलनिपरि परी मोती सम दिपै, तपन तबे पे परी नसै कछु सोचना। उतकिष्ट मध्यम जघन्य जैसौं संग मिले, तैसौ फल लहै मति पौच मति पोचना ।।१४७।। मलय सुवास देखो निंबादि सुगन्ध करे, पारस पखान लोह कंचन करत है। रजक प्रसंग पट समलतें श्वेत करै, भेषज प्रसंग विष रोगन हरत है।। पंडित प्रसंग जन मूरखतें बुध करै, काष्ट के प्रसंग लोह पानी में तरत है। जैसौ जाको संग ताकौ तैसी फल प्रापति है, सज्जनप्रसंग सब दुख निवरत है।। १४८, मनमोदन, पंचशती, पृ.७०-७१। १५८. वेदान्तसार, पृ.७। १५९. बौद्ध संस्कृति का इतिहास, पृ.३-५ अतस्तद्भासकं नित्यशुद्धयुक्त सत्यस्वभावं प्रत्यकः। चैतन्यमेवात्म भवस्त्विति वेदान्तविदनुभवः । वेदान्तसार-सं. हरियत्रा, पृ.८। १६१. बौद्ध संस्कृति का इतिहास, पृ८८ १६२. ब्रह्मविलास, द्रव्यसंग्रह, २, पृ.३३। १६३. काया उदधि चितव पिंडा पाहां। दई रतन सौं हिरदय माहां । जायसी ग्रन्थावली, पृ.१७७ ०
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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