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________________ 472 १२०. हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ससै खाया सकल जग, ससा किनहूंन खद्ध, वही, पृ.२-३। १२१. वही, पृ.४। १२२. जायसी ग्रन्थमाला, पृ.७। १२३. गुरु सुआजेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ।।पद्मावत । १२४. गुरु होइ आप, कीन्ह उचेला, जायसी ग्रन्थावली, पृ. ३३। १२५. गुरु विरह चिनगीजो मेला। जो सुलगाइ लेइ सोचेला।। वही, पृ.५१ । १२६. जायसी ग्रंथावली, स्तुतिखण्ड, पृ.७। १२७. जोग विधि मधुबन सिखिहैं जाइ। बिनु गुरु निकट संदेसनि कैसे, अवगाह्यौ जाइ। सूरसागर (सभा), पद ४३२८। १२८. वही, पद ३३६। १२९. सूरसागर, पद ४१६, ४१७; सूर और उनका साहित्य। १३०. परमेसुर से गुरु बड़े गावत वेद पुरान-संतसुधासार, पत्र १८२। १३१. आचार्य क्षितिमोहन सेन-दादू औरर उनकी धर्मसाधना, पाटल सन्त विशेषांक, भाग १, पृ. ११२। १३२. बलिहारी गुरु आपणों द्यौ हांड़ी के बार। जिनि मानिषतें देवता, करत न लागी बार।। गुरु ग्रंथ साहिब, म १, आसादीवार, पृ.१। १३३. सुन्दरदास ग्रंथावली, प्रथम खण्ड, पृ.८। १३४. रामचरितमानस, बालकाण्ड १-५। १३५. गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई जो विरंचि संकर सम होई। बिन गुरु होहि कि ज्ञान ज्ञान कि होइ विराग विनु। रामचरितमानस, उत्तरकाण्ड, ९३। १३६. वही, उत्तरकाण्ड, ४३१४। १३७. बनारसीविलास, पंचपद विधान, १-१० पृ. १६२-१६३। हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ.११७। १३९. ज्यौं वरषै वरषा समै, मेघ अखंडित धार। त्यौं सद्गुरु वानी खिरै, जगत जीव हितकार।। नाटक समयसार, ६, पृ. ३३८५ १३८.
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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