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________________ 462 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ११९. मेरा मन का प्यरा जो मिलै। मेरा सहज सनेही जो मिलै।।१।। उपज्यो कंत मिलन को चाव। समता सखी सों कहै इस भाव।।३।। मैं विरहिन पिय के आधीन। यों तलफों ज्यों जलबिन मीन।।३।। बाहिर देखू तो पिय दूर। बट देखे घट में भरपूर।।४।। होहुँ मगन में दरशन पाय। ज्यों दरिया में बूंद समाय।।९।। पिय को मिलों अपनपो खोय। ओला गलपाणी ज्यों होय।।१०।। बनारसीविलास, अध्यातम गीत, १-१०, पृ.१५९-१६० । १२०. वही, अध्यातम गीत, १८-२९, पृ.१६१-१६२। १२१. बनारसीविलास, अध्यातम पद पंक्ति, १०, पृ. २२८-२९। १२२. बनारसीविलास, पृ. २४१। १२३. हिन्दी पद संग्रह, पृ. ३-५। १२४. हिन्दी पद संग्रह, पृ. १६, जिनहर्ष का नेमि-राजीमती बार समास सवैया १. जैन गुर्जर कवियों, खंड २, भाग, पृ. ११८०; विनोदीलाल का नेमि राजुल बारहमासा, बारहमासा संग्रह, जैन पुस्तक भवक कलकत्ता, तुलनार्थ देखिये। १२५. नेमिनाथ के पद, हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. १५७; लक्ष्मी बालम का भी वियोग वर्णन देखिये जहाँ साधक की परमात्मा के प्रति दाम्पत्यमूलक रति दिखाई देती है, वही, नेमिराजुल बारहमासा, १४, पृ. ३०९। १२६. भूधर विलास, १३, पृ.८। १२७. वही, ४५, पृ, २५; पद १३। १२८. पंचसहेली गीत, लुणकरजी पाण्डया मन्दिर, जयपुर के गुटका नं, १४४ में अंकित है; हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ.१०१-१०३। १२९. ब्रह्मविलास,शत अष्टोत्तरी, २७ वांपद्य, पृ.१४। १३०. आनंदघन बहोत्तरी, ३२-४१। १३१. पिया बिन सुधि-बुधि मुंदी हो। विरह भुजंग निसा समैं, मेरी सेजड़ी बूंदी हो। भोयणपान कथा मिटी. किसकू कहुं सुद्धी हो।।वही, ६२। १३२. आनन्दघन बहोत्तरी, ३२। १३३. वही, पृ.२०। १३४. शिव-रमणी विवाह, १६ अजयराज पाटणी, बधीचन्द मन्दिर, जयपुर गुटका नं.१५८ वेष्टन नं.१२७५।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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