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________________ 446 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना १२२. ब्रह्मविलास, सुपंथ कुपंथ पचीसिका, ११, पृ. १८२ १२३. नरदेह पाये कहा पंडित कहाये कहा, तीरथ के न्हाये कहा तीर तो न जैहे रे। लच्छि के कमाये कहा अच्छ के अघाये कहा, छत्र के धराये कहा छीनतान ऐहै रे। केश के मुंडाये कहा भेष के बनाये कहा, जोबन के आये कहा जराहू न खैहै रे। भ्रम को विलास कहा दुर्जन में वास कहा, आत्म प्रकाश विन पीछे पछितै हेरे ।।" वही, अनित्य पचीसिका, ९. पृ. १७४। १२४. वही, सुबुद्धि चौबीसी, १०, पृ. १५९। १२५. जोगी हुवा कान फडाया झोरी मुद्रा डारी है। गोरखक है त्रसना नहीं मारी, धरि धरि तुमची न्यारी है।।२।। जती हुवा इन्द्री नहीं जीती, पंचभूत नहिं माऱ्या है। जीव अजीव के समझा नाहीं, भेष लेइ करि हास्या है।।४।। वेद पदै अरु बामन कहावै, ब्रह्म दसा नहीं पाया है। आत्म तत्त्व का अरथ न समज्या, पोथी काजनम गुमाया है।।५।। जंगल जावै भस्म चढ़ावै, जटाव धारी केसा है। परभव की आसा ही मारी, फिर जैसा का तैसा है।।६।। रूपचन्द, स्फुटपद् २-६, अपभ्रंश और हिन्दी में जैन रहस्यवाद, पृ. १८४, अभय जैन ग्रन्थालय वीकानेर की हस्तलिखित प्रति। १२६. उपदेशदोहा शतक, ५-१८ दीवान बधीचन्द मंदिर जयपुर, गुटका नं. १७, वेष्टन नं ६३६। १२७. जसराज बावनी, ५६, जैन गुर्जर कविओ, भाग २,पृ.११६। १२८. सिद्धान्त शिरोमणि, ५७-५८, हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ. १६८ १२९. हिन्दी पद संग्रह,पृ. १४५। १३०. हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. ३३२। १३१. अध्यात्म पदावली, पृ. ३४२। १३२. हिन्दी पद संग्रह, पृ. ४९। १३३. बनारसीविलास, पृ. १५२, ५३ । १३४. रे. मन ! कर सदा सन्तोष, जातें मिटत सब दुःख दोष। बनारसीविलास, पृ. २२८। १३५. वही, अध्यातम पंक्ति, १३, पृ. २३१ । १३६. हिन्दी पद संग्रह, पृ.८२। १३७. वही, पृ.९५।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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