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________________ रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 431 स्थायीभाव माना गया है। जैन ग्रन्थों का अन्तिम मंगलाचरण प्रायः शान्ति की याचना में ही समाप्त होता है - देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शान्तिं भगवजिनेन्द्रः।१३ जैन मंत्र भी शान्तिपरक हैं। उनमें सात्विक भक्ति निहित है, राग-द्वेषादि विकार भावों से विरक्त होकर चरम शान्ति की याचना गर्भित है। इसलिए शान्त रस को बनारसीदास ने 'आत्मिक रस' कहा है। " भैया भगवतीदास ने भी जैन मत को शान्तरस का मत माना है।" वस्तुतः समूचा जैन साहित्य शान्ति रस से आप्लावित है। १६ १) आधुनिक साहित्य में अभिव्यक्त रहस्यवाद प्रस्तुत रहस्यवाद से भिन्न है। उसमें कर्मोपशमनजन्य शान्ति का कोई स्थान नहीं। आधुनिक रहस्यवाद में प्राचीन जैन रहस्यवाद की अपेक्षा आध्यात्मिकता के दर्शन बहुत कम होते हैं। धार्मिक दृष्टि का लगभग अभाव-सा है । उसकी मुख्य प्रेरणा मानवीय और सांस्कृतिक है। २) मध्यकालीन हिन्दी जैन रहस्यभावना के सन्दर्भ में साधकों का प्रकृति के प्रति जिज्ञासा का भाव बहुत कम है जबकि आधुनिक रहस्यवाद विराट प्रकृति की रमणीयता में ही अधिक पलापुसा है। प्रसाद, निराला, पन्त और महादेवी आदि कवियों का रहस्यवाद प्राकृतिक रहस्यानुभूति के मधुर स्वर से आपूरित है। रहस्यमयी सत्ता का आभास देने में उनकी प्रवृत्ति ही सहायक होती है । लगता है, प्राचीन जैन कवि प्रकृति को ब्रह्म साक्षात्कार में बाधक तत्त्व मानते रहे हैं। पर आधुनिक कवियों ने प्रकृति को बाधक न मानकर उसे साधक माना है। ३) शब्दों का सीमित बन्धन रहस्यवाद की अभिव्यक्ति में
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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