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________________ काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि 27 लगे तो तुलसीदास का रामचरितमानस भी साहित्य क्षेत्र में अविवेच्य हो जायेगा और जायसी का पद्मावत भी साहित्य सीमा के भीतर नहीं घुस सकेगा। डॉ. भोलाशंकर व्यास ने भी इसका समर्थन करते हुए लिखा कि धार्मिक प्रेरणा या आध्यात्मिक उपदेश का होना काव्यत्व का बाधक नहीं समझा जाना चाहिए। लगभग दसवीं शती के पूर्व की भाषा में अपभ्रंश के तत्त्व अधिक मिलते हैं। यह स्वाभाविक भी है। इसे चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने पुरानी हिन्दी कहा है। राहुल सांकृत्यायन ने भी अपभ्रंश को पुरानी हिन्दी माना है और हिन्दी काव्य धारा में लिखा है"जैनों ने अपभ्रंश साहित्य की रचना और उसकी सुरक्षा में उसके अधिक काम किया। वह ब्राह्मणों की तरह संस्कृत के अंध भक्त भी नहीं थे। अतएव जैनों ने देश भाषा में कथा साहित्य की सृष्टि की, जिसके कारण स्वयंभू और पुष्पदन्त जैसे अनमोल अद्वितीय कविरत्न हमें मिले। “स्वयंभू हमारे इसी युग में नहीं, हिन्दी कविता के पांचों युगों - १. सिद्ध सामन्त युग, २. सूफी युग, ३. भक्ति युग, ४. दरबारी युग, ५. नवजागरण युग के जितने कवियों को हमने यहां संग्रहीत किया है, उसमें यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि स्वयंभू सबसे बड़े कवि थे। स्वयंभू के रामायण और महाभारत दोनों ही विशाल काव्य यह बडा विवादास्पद प्रश्न है कि अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थों में आये हुए देशज शब्दों अथवा अपभ्रंश साहित्य की कतिपय प्रवृत्तियों को “पुरानी हिन्दी'' का रूप स्वीकार किया जाय या नहीं। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वान अपभ्रंश भाषा और साहित्य का मूल्यांकन करते हुए भी उसे - “पुरानी हिन्दी'' का रूप स्वीकार करने
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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