SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 396 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना स्वीकारा है। हेमचन्द्राचार्य ने कहा है कि योगी समरसी होकर परमानन्द का अनुभव करता है। "योगीन्दु ने भी इसी ब्रह्मैक्य की बात कही है। रामसिंह ने इस समरसता के बाद किसी भी पूजा या समाधि की आवश्यकता नहीं बताई है।।२९७ इस प्रकार मध्यकाल में हिन्दी जैन-जैनेतर कवियों ने योगा और सहज साधना का अवलम्बन अपने साध्य की प्राप्ति के लिए किया है। ब्रह्मत्व या निरंजन की अनुभूति के बाद साधक समरसता के रंग में रंगजाता है। रहस्य भावना का यह अन्यतम उद्देश्य है। २. भावमूलक रहस्य भावना १. अनुभव आध्यात्मिक साधना किंवा रहस्य की प्राप्ति के लिए स्वानुभूति एक अपरिहार्य तत्त्व हैं। इसे जैन-जैनेतर साधकों ने समान रूप से स्वीकार किया है। तर्क प्रतिष्ठानात् जैसे वाक्यों से एक तथ्य सामने आता है कि आत्मानुभूति में तर्क और वादविवाद का कोई स्थान नहीं हैं ‘न चक्षुसा गृह्यते नापि वाचा', और 'यतो वाचा निवर्तन्ते अप्राप्त मनसा सहभी यही मत व्यक्त करते हैं। जैसा हम पीछे लिख चुके हैं, जैनधर्म में भेदविज्ञान, स्वपर विवेक, तत्त्वज्ञान, आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान, आत्म-साक्षात्कार आदि से उत्पन्न होने वाले अनुभव को चिदानन्द चैतन्य रस, अनिर्वचनीय आनन्द आदि जैसे शब्दों से प्रगट किया गया है। बौद्ध साहित्य में भी इसी प्रकार के साक्षात्कार की अनेक घटनाओं और कथनों का उल्लेख मिलता है। कबीर ने 'राम रतन पाया रे करम विचारा' नैना बैन
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy