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________________ रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 393 कारण था। इसके प्रवर्तक सरहपाद माने जाते हैं जिन्होंने नैसर्गिक जीवन व्यतीत करने पर जोर दिया है। उसमें हठयोग का कोई स्थान नहीं। चित्त ही सभी कर्मो का बीज है उसी को सहज स्वभाव की स्थिति कहा गया है जिसमें चित्त और अचित्त दोनों का शमन हो जाता है। कण्हपा ने इसी को परम तत्त्व भी कहा है। इसमें प्रज्ञा और उपाय अद्वैत अवस्था में आ जाते हैं। कौलमार्गियों में इन्हीं तत्त्वों का शक्ति और शिव कहा जाता है। नाथों का यही परम तत्त्व, परम ज्ञान, परम स्वभाव और सहज समाधि रूप है। बौद्धों के सहजयान से प्रभावित होकर एक वैष्णव सहजिया सम्प्रदाय भी खड़ा हुआ जिसमें श्रीकृष्ण को परम तत्त्व और राधा को उनकी नैसर्गिक आल्हादिनी शक्ति माना गया है। दोनों की रहस्यमयी केलि की सहजानुभूति कर इस सम्प्रदाय के साधक प्रेम-लीलाओं का उपभोग करते हैं। उनके अनुसार प्रत्येक पुरुष और स्त्री में एक आध्यात्मिक तत्त्व रहता है जिसे हम क्रमशः स्वरूप और रूप कहते हैं जो श्री कृष्ण और राधा के प्रतीक हैं। साधक को आत्म विस्मृतिपूर्वक इनको प्राप्त करना चाहिए। शुद्ध और सात्विक व्यक्ति को ही इसमें सहजिया मानुष कहा गया है। नाथ सम्प्रदाय का लक्ष्य विविध सिद्धियों को प्राप्त करना रहा है पर सहजिया सम्प्रदाय उसे मात्र चमत्कार प्रदर्शन मानकर गर्हित मानते हैं और सहजानंद के साथ उसका सम्बन्ध स्वीकार नहीं करते। __सन्तों ने सहज के स्वरूप को बिल्कुल बदल दिया। ‘सन्त कवियों तक आतेआते सहज की मिथुन परक व्याख्या का लोप होने लगता है और युग के स्वाधीनचेता कबीर सहज को समस्त मतवादों
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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