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________________ 337 रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियाँ आज सुहागन नारी अवध आज । मेरे नाथ आप सुध, कीनी निज अंगचारी । प्रेम प्रतीति राग रुचि रंगत, पहिरे झीरी सारी । मंहिदी भक्ति रंग की राची, भाव अंजन सुखकारी । सहज सुभाव चुरी मैं पैन्ही, थिरता कंकन भारी । ध्यान उरबसी उर में राखी, पिय गुनमाल अधारी । सुरत सिन्दूर मांग रंगराती, निरतै बैनि समारी । उपजी ज्योति उद्योत घट त्रिभुवन आरसी केवलकारी । उपजी धुनि अजपा की अनहद, जीत नगारेवारी । झड़ी सदा आनन्दघन बरसत, बन मोर एकनतारी ।।१२२ जैन साधकों ने एक और प्रकार के आध्यात्मिक प्रेम का वर्णन किया है। साधक जब अनगार दीक्षा लेता है तब उसका दीक्षा कुमारी अथवा संयमश्री के साथ विवाह सम्पन्न होता है। आत्मा रूप पति का मन शिवरमणी रूप पत्नी ने आकर्षित कर लिया 'शिवरमणी मन मोहियो जीजेठे रहे जी लुभाव।१३४ कवि भगवतीदास अपनी चूनरी को अपने इष्ट देव के रंग में रंगने के लिए आतुर दिखाई देते हैं। उसमें आत्मा रूपी सुन्दरी शिव रूप प्रीतम को प्राप्त करने का प्रयत्न करती है। वह सम्यक्त्व रूपी वस्त्र को धारण कर ज्ञान रूपी जल के द्वारा सभी प्रकार का मल धोकर सुन्दरी शिव से विवाह करती है । इस उपलक्ष्य में एक सरस ज्योंनार होती है जिसमें गणधर परोसने वाले होते हैं जिसके खाने से अनन्त चतुष्टय की प्राप्ति होती है। तुम्ह जिनवर देहि रंगाई हो, विनवड़ सषी पिया शिव सुन्दरी । अरुण अनुपम माल हो मेरो भव जलतारण चूंनड़ी ।।२।। समकित वस्त्र विसाहिले ज्ञान सलिल सग सेइ हो ।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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