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________________ 252 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना जो तत्त्व रहस्य बना था उसकी गुत्थी धीरे-धीरे रहस्यभावना और रहस्य तत्त्वों के माध्यम से सुलझने लगती है । वह कषाय, लेश्या आदि मार्गणाओं से मुक्त होकर महाव्रतों का अनुपालन कर गुणस्थानों के माध्यम से क्रमशः निर्वाण प्राप्ति की ओर अभिमुख हो जाता है। १. सद्गुरु __ जैन साधना में सद्गुरु प्राप्ति का विशेष महत्त्व है। विशेषतः उसका महत्त्व रहस्य साधकों के लिए है, जिन्हें वह साधना करने की प्रेरणा देता है। रहस्य साधना में जो तत्त्व बाधा डालते हैं उनके प्रति अरुचि जाग्रत कर साधना की ओर अग्रसर करता है। साधना में सद्गुरु का स्थान वही है जो अर्हन्त का है। जैन साधकों ने अर्हन्त-तीर्थंकर, आचार्य, उपाध्याय और साधु को सद्गुरु मानकर उनकी उपासना, स्तुति और भक्ति की है। मोहादिक कर्मो के बने रहने के कारण वह 'बड़े भागनि' से हो पाती है। कुशल लाभ ने गुरु श्री पूज्यवाहण के उपदेशों को कोकिल-कामिनी के गीतों में, मयूरों की थिरकन में और चकोरों के पुलकित नयनों में देखा। उनके ध्यान में स्नान करते ही शीतल पवन की लहरें चलने लगती हैं सकल जगत् सुपथ की सुगन्ध से महकने लगता है, सातों क्षेत्र सुधर्म से आपूर हो जाता है। ऐसे गुरु के प्रसाद की उपलब्धि यदि हो सके तो शाश्वत् सुख प्राप्त होने में कोई बाधा नहीं होगी - 'सदा गुरु ध्यान मानलहरि शीतल वहइ रे । कीर्ति सुजस विसाल सकल जग मह महइ रे । साते क्षेत्र सुठाम सुधर्मह नीपजई रे । श्री गुरु पाय प्रसाद सदा सुख संपजइ रे ।।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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