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________________ 235 रहस्यभावना के बाधक तत्त्व सुबह गिनता है, न शाम, कहीं भी चल देता है, सभी कुटुम्बियों को और शरीर को छोड़कर दूर देश चला जाता है, कोई उसकी रक्षा करने वाला नहीं सच तो यह है, किसी से कितनी भी प्रीति करो, यह निश्चित है कि वह एक दिन पृथक् हो जायेगा। इसने धन से प्रीति की और धर्म को भूल गया। मोह के कारण अनन्तकाल तक घूमता रहा। ०३ राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया, विषयवासना आदि विकारों में मग्न रहा। उसने कारण दुःखों को भी भोगता रहा पर कभी सुख नहीं पाया। इसलिए भगवतीदास बड़े दुःखी होकर कहते हैं - "चेतन परे मोह वश आय।' यह चेतन मोह के वश होकर विषय भोगों में रम जाता है। वह कभी धर्म के विषय में सोचता नहीं। समुद्र में चिन्तामणिरत्न फेंककर जैसे मूर्ख पश्चात्ताप करता है वैसे ही यह मोही नरभव पाकर भी धर्म न करने पर फिर अन्त में पश्चात्ताप करेगा।०५ मोह के भ्रम से ही अधिकांश कर्म किये जाते हैं। मोह को चेतन और अचेतन में कोई भेद नहीं दिखाई देता। मोह के वश किसने क्या किया है, इसे पुराण कथाओं का आधार लेकर भवगतीदास ने सूचित किया है। उन कथाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि मोह की परिणति दो हैं - राग और द्वेष । इन दोनों के कारण जीव मिथ्याभ्रम में पड़ जाता है। यह जीव घिनौने शरीर में लीन रहता, नारी के चाम से मण्डित देह पर आकर्षित होता, लक्ष्मी के कारण बड़े-बड़े महाराजा अपना पद छोड़कर प्रजा के समान लोभ की पूर्ति के लिए डोलता है। भगवतीदास को उन सांसारियों पर बड़ी हंसी आती है जो इस छोटी-सी आयु में करोड़ों उपाय करते हैं। रे मूढ़। जिसे तूने घर कहा है वहां डर तो अनेक हैं पर उन सभी को भूलकर विषय-वासना में फंस गया है । जल, चोट, उदर, रोग, शोक, लोकलाज, राज आदि अनेक डरों से तो तूं
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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