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________________ 166 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना मात्र मनोदशा से ही नहीं, वह तो वस्तुतः एक विशुद्ध साधन पथ पर आचरित होकर आत्मसाक्षात्कार करने का ऐकान्तिक मार्ग है। Frank Gaynor का यह कथन कि उसे विश्वजनीन आत्मा के साथ अनात्मिक संयोग अथवा बौद्धिक एकत्व का प्रतीक न होकर अनुभूतिजन्य सहजानन्द का प्रतीक माना जाना चाहिए जहां व्यक्ति आत्मा के अशुद्ध स्वरूप को दूर करने में जुटा रहता है। PriPanthoison, Ku. Under Hit आदि विद्वानों की परिभाषाओं में भी आत्मा और परमात्मा के मिलने को प्रमुख स्थान दिया है। यहां भी मैं सहमत नहीं हो सकती क्योंकि ईश्वर को सभी धर्मो में समान रूप से स्वीकार नहीं किया गया। अतः रहस्यवाद की ये परिभाषायें सार्वभौमिक न होकर किसी पन्थ विशेष से सम्बद्ध ही मानी जा सकेगी। रहस्यवाद की परिभाषा को एकांगिता के संकीर्ण दायरे से हटाकर उसे सर्वांगीण बनाने की दृष्टि से हम इस प्रकार परिभाषा कर सकते हैं - रहस्यभावना एक ऐसा आध्यात्मिक साधन है जिसके माध्यम से साधक स्वानुभूतिपूर्वक आत्मतत्त्व से परम तत्त्व में लीन हो जाता है। यही रहस्यभावना अभिव्यक्ति के क्षेत्र में आकर रहस्यवाद कही जा सकती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि अध्याम की चरमोत्कर्षावस्था की भावाभिव्यक्ति का नाम रहस्यवाद है। इस अर्थ की पुष्टि में हम पीछे प्राकृत जैनागम तथा धवला आदि के उद्धरण प्रस्तुत कर चुके हैं। इस परिभाषा में हम रहस्यवाद की प्रमुख विशेषताओं को इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं - (१) रहस्यभवना एक आध्यात्मिक साधन है। अध्यात्म से
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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