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________________ रहस्य भावना एक विश्लेषण 159 शब्दों में कहा जा सकता है कि रहस्य भावना का सम्बन्ध आत्मिकआध्यात्मिक साधना से है । पर उसकी भावात्मक साधना काव्यात्मक क्षेत्र में आ जाती है। वाद के साथ रहस्य (रहस्यवाद) शब्द का प्रयोग हिन्दी साहित्य में सर्वप्रथम आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सन् १९२७ में सरस्वती पत्रिका के मई अंक में किया था। लगभग इसी समय अवधनारायण उपाध्याय तथा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी इस शब्द का उपयोग किया । जैसा ऊपर हम देख चुके हैं, प्राचीन काल में रहस्य जैसे शब्द साहित्यिक क्षेत्र में आ चुके थे पर उसके पीछे अधिकांशतः अध्यात्मरस से सिक्त साधना पथ जुडा हुआ था। उसकी अभिव्यक्ति भले ही किसी भाव और भाषा में होती रही हो पर उसकी सहानुभूति सार्वभौमिक रही है। जहां तक उसकी अभिव्यक्ति का प्रश्न है, उसे निश्चित ही साक्षात्कार कर्ता गूगें के गुड की भांति पूर्णतः व्यक्त नहीं कर पाता । अपनी अभिव्यक्ति में सामर्थ्य लाने के लिए वह तरह-तरह के साधन अवश्य हैं। उन साधनों में हम विशेष रूप से संकेतमयी और प्रतीकात्मक भाषा को ले सकते हैं । ये दोनों साधन साहित्य में भी मिल जाते हैं। यद्यपि 'रहस्यवाद' जैसा शब्द प्राचीन भारतीय योगसाधनाओं में उपलब्ध नहीं होता, पर 'रहस्य' शब्द का प्रयोग अथवा उसकी भूमिका का विनियोग वहां सदैव से होता रहा है। इसलिए भारतीय साहित्य के लिए यह कोई नवीन तथ्य नहीं रहा। पर्यवेक्षण करने से आधुनिक हिन्दी साहित्य में 'रहस्यवाद' शब्द का प्रयोग पाश्चात्य साहित्य के अंग्रेजी शब्द Mysticism के रूपान्तर के रूप में प्रयुक्त हुआ है । इस Mysticism शब्द का प्रयोग भी अंग्रेजी साहित्य में
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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