SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 150 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना लखपति पिंगल, मालापिंगल, छन्दशतक, अलंकार आशय आदि रचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। इसी तरह अनस्तमितव्रत संधि, मदनयुद्ध, अनेकार्थ नाममाला, नाममाला, आत्मप्रवोधनाममाला, अर्धकथानक, अक्षरमाला, गोराबादल की बात, रामविनोद, वैद्यकसार,वचनकोष चित्तौड़ की गजल, क्रियाकोष, रत्नपरीक्षा, शकुनपरीक्षा, रासविलास, लखपतमंजरी नाममाला, गुर्वावली, चैत्य परिपाटी आदि रचनाएँ विविध विधाओं को समेटे हुए हैं। इसी तरह कुछ हियाली संज्ञक रचनाएँ भी मिलती हैं जो प्रहेलिका के रूप में लिखी गई हैं। बौद्धिक व्यायाम की दृष्टि से इनकी उपयोगिता निःसंदिग्ध है। मध्यकालीन जैनाचार्यों ने ऐसी अनेक समस्या मूलक रचनाएँ लिखी हैं। इन रचनाओं में समयसुन्दर और धर्मसी की रचनाएँ विशेष उल्लेखनीय हैं। उपर्युक्त प्रकीर्णक काव्य में मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों ने कहीं रस के सम्बन्ध में विचार किया है तो कहीं अलंकार और छन्द के, कहीं कोश लिखे हैं तो कहीं गुर्वावलियां, कहीं गजलें लिखी हैं तो कही ज्योतिष पर विचार किया है। यह सब उनकी प्रतिभा का परिणाम है। यहां हम उनमें से कतिपय उदाहरण प्रस्तुत करेंगे । रीतिकालिन अधिकांश वैदिक कवि मांसल श्रृंगार की विवृत्ति में लगे थे जबकि जैन कवि लोकप्रिय माध्यमों का सदुपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में कर रहे थे। इस संदर्भ में एक कवि ने हरियाली लिखी है तो अन्य संत कवियों ने उलटवासियों जैसे कवित्त लिखे हैं। उपाध्याय यशोविजय ये उलटवासियां देखिए - कहियो पंडित ! कोण ये नारी बीस बरस की अवधि विचारी कहियो। दोय पिताओ अह निपाई, संघ चतुर्विधि मन में आई। कीडीओ एक हाथी जायो, हाथी साहमो ससलो धायो।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy