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________________ 132 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना विनयचन्द की चूनड़ी (सं १५७६), साधुकीर्ति की चूनड़ी (सं १६४८), भगवतीदास की मुकति रमणी चूनड़ी (सं १६८०), चन्द्रकीर्ति की चारित्र चूनड़ी (सं १६५५) आदि काव्य इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं। विनयचन्द्र की चूनड़ी में पत्नी पति से ऐसी चूनड़ी चाहती है जो उसे भव समुद्र से पार करा सके -' ११. फागु, बेलि, बारहमासो और विवाहलो साहित्य __फागु में भी कवि अत्यन्त भक्तविभोर और आध्यात्मिक संतसा दिखाई देता है। इसमें कवि तीर्थंकर या आचार्य के प्रति समर्पित होकर भक्तिरस को उड़ेलता है। मलधारी राजशेखर सूरि की नेमिचन्द फागु (सं १४०५), हलराज की स्थूलिभद्र फागु (सं १४०९), सकलकीर्ति की शान्तिनाथ फागु (सं १४८०), सोमसुन्दर सूरि की नेमिनाथ वरस फागु (सं १४५०), ज्ञानभूषण की आदीश्वर फागु (सं १५६०), मालदेव की स्थूलभद्र फागु (सं १६१२), वाचक कनक सोम की मंगल कलश फागु (सं १६४९), रत्नकीर्ति, धनदेवर्गाण, समंधर, रत्नमण्डल, रायमल, अंचलकीर्ति, विद्याभूषण आदि कवियों की नेमिनाथ तीर्थंकर पर आधारित फागु रचनाएं काव्य की नयी विधा को प्रस्तुत करती है जिसमें सरसता, सहजता और समरसता का दर्शन होता है। नेमिनाथ और राजुल के विवाह का वर्णन करते समय कवि अत्यन्त भक्तविभोर और आध्यात्मिक संतसा दिखाई देता है। इसी तरह हेमविमल सूरि फागु (सं १५५४), पार्श्वनाथ फागु (सं १५५८), वसन्त फागु, सुरंगानिध नेमि फागु, अध्यात्म फागु आदि शताधिक फागुरचनाएँ आध्यात्मिकता से जुड़ी हुई हैं।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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