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________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना संयोजित किया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि प्रारम्भ में गीति और गाथा का पृथक् पृथक् अस्तित्व था। पर उत्तर काल में इन के बीच का अन्तर समाप्त होता गया और सभी को गीति काव्य के अन्तर्गत माना जाने लगा। वस्तुतः प्राकृत भाषा में गीतिकाव्य का विकास छान्दस् की मुक्तक शैली में हुआ है और आगम में उसे प्रवचन पद्धति में सम्हारा गया है। इसके बाद ही प्राकृत में गाहा सतसइ, वज्जालग्गं, जैसे गीतिकाव्य और बाद में प्राकृत के रसेतर मुक्तक, काव्यों की भी रचना हुई। जैसे - वैराग्यशतक, वैराग्यरसायन प्रकरण, ऋषभ पंचाशिका, अजिय संतिथय आदि। इसी तरह संस्कृत के गीतिकाव्यों में स्तोत्रकाव्य और कंगारिक गीतिकाव्य आते हैं। संस्कृत में रचित लगभग सहस्र स्तोत्र काव्यों में विशेष रूप से समन्तभद्र के स्वयंभूस्तोत्र, देवागम स्तोत्र, युक्त्यनुशासन और जिनशतकालंकार, सिद्धसेन की द्वात्रिंशिकाएं, पूज्यपाद का भक्तिस्तोत्र, पात्रकेशरी का पात्रकेशरी स्तोत्र, विद्यानन्द का पार्श्वनाथ स्तोत्र, धनंजय का विषापहार स्तोत्र, मानतुंग का भक्तामर स्तोत्र, हेमचन्द्र का वीतरागस्तोत्र, महावीर स्तोत्र एवं चारुकीर्ति का गीतवीतराग स्तोत्र विशेष उल्लेखनीय हैं। गीतवीतराग स्तोत्र की निम्न पंक्तियां देखिए - चन्दनलिप्तसुवर्णशरीरसुधौतवसनवरधीरम्, मन्दरशिखरनिभामलमणियुतसन्नुतमुकुटमुदारम्। कथमिह लप्स्य द्विजवर मानिनिमन्मथकेलिपरम्।। इन्दुरविद्वयनिभमणिकुण्डलमण्डितगण्डयुगेशम् चन्दिरदलसमनिटिलविराजितसुन्दरतिलकसुकेशम्।। प्राकृत साहित्य का प्रगीत काव्य मेरी दृष्टि में उत्तराध्ययन से
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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