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________________ उत्कृष्टा त्रीजे भवे, पामे अविचल ठाण रे । भावाचारय वंदना, करिये थई सावधान रे ।। आचारज.-३ दोहा नवविध ब्रह्म गुप्ति धरे, वर्जे पाप नियाण । विहार करे नव कल्पनो, सूरि तत्त्वना जाण ॥१॥ ढाल छट्टी । राग विहागडो । मुज धर आवजो रे नाथ, यह देशी सत्तावीश गुण साधुना, शोभित जास शरीर । नव-कोटी शुद्ध आहार ले, इम गुण छत्रीशे धीर । भविजन भावशुं नमो आज ॥१॥ जिम पामो अक्षयराज ॥ भवि ॥ यह टेक ॥ जे प्रगट करवा अति निपुण, वर लब्धि अट्ठावीश । अडविध प्रभावकपणुं धरे, ए सूरिगुण छत्रीश ॥ भवि. २ ॥ तजे चौद आन्तर ग्रंथीने, परिषह जिते बावीश । कहे पद्म आचारय नमो, बहु सूरिगुण छत्रीश || भवि.-३॥ चतुर्थ श्री उपाध्यायपद पूजा दोहा चोथे पद पाठक नमुं, सकल संघ आधार । भणे भणावे साधुने, समता रस भंडार ॥११॥ ढाल सातवीं-रागवसंत तुं तो जिन भज विलंब न कर हो ॥ होरी के खेलइया-यह देशी तुं तो पाठक पद मन घर हो रंगीले जीउरा । राय रंक जस निकटे आवे पण जस नहिं निज पर हो ॥ रंगीले.-१ ॥ सारणादिक गच्छ माहे करता, पण रमता निज घर हो ॥रंगीले-२ द्वादशांग सज्झाय करणकुं, जे निशदिन तत्पर हो ॥ रंगीले-३ ए उवज्झाय निर्यामक पामी. तुं तो भवसागर सुखे तर हो ॥-४ जे पर वादि मत्तंगज केरी, न धरे हरिपरे डर हो ॥ रंगीलें-५ उत्तम गुरुपद पद्म सेवनर्थे, पकडे शिववधू कर हो । रंगीले-६ दोहा आचारज मुख आगले, जे युवराज समान । निद्रा विकथा नवि करे, सर्व समय सावधान ॥१२॥ 5071
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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