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________________ उलालो उच्छेद कर्म अनादि संतति, जेह सिद्धपणुं वरे । योग संगे आहार टाली, भाव अक्रियता करे ॥ अंतर मुहूरत तत्त्व साधे, सर्व संवरता करी । निज आत्मसत्ता प्रगट भावे, करो तप गुण आदरी ॥२॥ ढाल एम नवपद गुण मंडल, चउ निक्षेप प्रमाणो जी । सात नये जे आदरे, सम्यग् ज्ञानने जाणो जी ॥३॥ उलालो निर्धार सेती गुणी गुणनो, जे करे बहुमान ए । तसु करण ईहा तत्त्वरमणे, थाय निर्मल ध्यान ए । एम शुद्ध सत्ता मल्यो चेतन, सकल सिद्धि अनुसरे । अक्षय अनन्त महंत चिद्धन, परम आनन्दता वरे ।४। कलश इय सयल सुखकर गुण पुरंदर, सिद्धचक्र पदावली । सवि लद्धि विज्जा सिद्धि मंदिर, भविक पूजो मन रुली । उवज्झायवर श्री राजसागर, ज्ञान धर्मसु राजता ।। गुरु दीपचंद सुचरण सेवक, देवचन्द्र सुशोभता ॥१॥ पूजा ढाल श्रीपाल के रास की देशी जाणता त्रिहुं, ज्ञाने संयुत, ते भव भक्ति जिणंद । जेह आदरे कर्म खपवा, ते तप शिवतरु कंद रे ॥ भविका ! सिद्धचक्र पद वंदो ॥१॥ कर्म निकाचित पण क्षय जाये क्षमा सहित जे करता । ते तप नमिये जेह दीपावे, जिनशासन उजमंता रे ॥ भविका ! सिद्ध. ॥२॥ ____ आमोसही पमुहा बहु लद्धि, होवे जास प्रभावे । अष्ट महासिद्धि नव निधि प्रगटे, नमिये ते तप भावे रे । भविका ! सिद्ध. ॥३॥ फल शिवसुख महोटुं सुर नर वर, संपत्ति जेहनुं फूल । ते तप पद सुरतरु सरिखो वंदु, शम मकरंद अमूल रे ॥ भविका ! सिद्ध. ॥४॥ सर्व मंगलमां पहेलुं मंगल, वरणवीये जे ग्रन्थे । ते तप पद त्रिहं काल नमीजे, वर सहाय शिव पन्थे रे ॥ भविका ! सिद्ध. ॥५॥ 503
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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