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________________ भुजंगप्रयात्-वृत्तम् करी आठ कर्म क्षये पार पाम्या, जरा जन्म मरणादि भय जेणे वाम्या । निरावरण जे आत्मरुपे प्रसिद्धा, थया पार पामी सदा सिद्ध बुद्धा ॥ १ ॥ त्रिभागोन-देहावगाहात्मदेशा, रह्या ज्ञानमय जातवर्णादि लेशा । सदानंद सौख्याश्रिता ज्योतिरुपा, अनाबाध अपुनर्भवादि स्वरुपा ||२|| ढाल, उलाला की देशी सकल करम मल क्षय करी, पूरण शुद्ध स्वरुपो जी । अव्याबाध प्रभुतामयी, आतम संपत्ति भूपो जो ॥१॥ लालो जे भूप आतम सहज सम्पत्ति, शक्ति व्यक्तिपणे करी । स्वद्रव्य क्षेत्र स्वकाल भावे, गुण अनंता आदरी ॥१॥ सुस्वभाव गुण पर्याय परिणति, सिद्ध साधन परमणी । मुनिराज मानस हंस समवड, नमो सिद्ध महा गुणी ॥२॥ ढाल, श्रीपाल के रासकी देशी समय पएसंतर अणफरसी, चरम तिभाग विशेष । अवगाहन लही जे शिव पहोता, सिद्ध नमो ते अशेष रे । भविका ! सिद्ध ॥१॥ पूर्व प्रयोगने गति परिणामे, बन्धन छेद असंग । समय एक ऊर्ध्व गति जेहनी ते सिद्ध प्रणमो रंग रे ॥ भविका ! सिद्ध ॥२॥ निर्मल सिद्धशिलानी उपरे जोयण एक लोगंत । सादि अनन्त तिहां स्थिति जेहनी, ते सिद्ध प्रणमो संत रे । भविका ! सिद्ध ॥३॥ जाणे पणन शके कही पुरगुण, प्राकृत तेम गुण जास । उपमा विण नाणी भविमांहे ते सिद्ध दियो उल्लास रे । भविका ! सिद्ध ॥४॥ ज्योतिशुं ज्योति मली जस अनुपम, विरमी सकल उपाधि । आतमराग रमापति समरो, ते सिद्ध सहज समाधि रे । भविका ! सिद्ध ॥५॥ कम्मावरण विप्पमुक्के, अणंतनाणाइ सिरिचउक्के समग्ग लोगग्ग पयत्थ सिध्धे, क्षाएह निच्वंपि समग्ग सिध्धे विमला केवल भासन भास्करं ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते सिद्धाय जलादिकं यजामहे स्वाहा । 493
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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