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॥ दोहा ॥ पाले महाव्रत प्रीतथी, रात्रि भक्तनो त्याग ॥ षट् काया रक्षण करे, लोभ-निग्रहे राग ॥१॥ क्षमा करे, निर्मल धरे, चित्त सहित उपयोग ॥ उपकरण प्रतिलेखना, करता संयम योग ॥२॥ निज त्रिकरणने रोकता, माठा कामथी जेह ॥ बावीस परिसहने सहे, न तजे टेक पडे देह ॥३॥
पांच इंद्रियो वश करे, पाले शुद्ध आचार ।। मुनिपद सार संसारनो, त्यागामृत सुखकार ॥४॥
॥ढाळ-पहेली ॥
(राग-भीमपलाश नी कव्वाली) (जमना तणा किनारे गोपाल गो चरावे-ए चाल) संसारना किनारे, इच्छो तमे जो जावा ॥अंचली।।
महाव्रत शुद्ध पाले, आनंद सरमा म्हाले । संसारथी विराम्या, सेवो मुनि छे नावा ॥संसारना ॥१॥
दशविध धर्म पाली, बेतालीस सदोष टाली ॥ आहार शुद्ध करता, सेवो मुनिछे नावा ।संसारना ॥२॥
बावीस परिसह धारी, लोचादि कष्टकारी ॥ निज आत्मरुपे रमता, सेवो मुनिछे नावा ॥संसारना ॥३॥
आधि उपाधि व्याधि, करे दूर व्रत साधी ॥ ब्रह्मचर्य शुद्ध धरता, सेवो मुनिछे नावा ॥ संसारना ॥४॥
___मुनिपद आत्मरामी, शिवसद्म विसरामि॥ निज सर्व लब्धि धरता, सेवो मुनिछे नावा ॥ संसारना ॥५॥
॥ दोहा ॥ मुनिपदवी पाम्या विना, नथी शांतिनुं स्थान ॥ तेजकिरण स्पर्ध्या विना, नहीं तिमिरनी हाण ॥१॥
छोडी प्राज्य साम्राज्यने, मुनिपद ले जगदेव जाणी पदनी अगत्यता, सेवो भवि नित्यमेव ॥२॥