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________________ ॥10॥ ॥11॥ ||12|| नवतत्त्व सुधाकुण्ड गर्भो गांभीर्य मंदिरम् अयं सर्वज्ञ सिद्धान्तः पातालं प्रतिभाति मे सर्वज्योतिष्मतां मान्यो मध्यस्थ पदमाश्रितः रत्नाकरावृतोऽनन्तालोकः श्रीमान जिनागमः स्थानं सुमनसामेकं स्थास्नुर्लोकद्वयोरपि विनिद्र शाश्वत ज्योति भांतिगौः परमेष्ठिनः श्री धर्मभूमीश्वर राजधानी दुष्कर्म पाथोजवनी हिमानी संदेह संदोह लत्ता कृपाणी श्रेयांसि पुष्णातु जिनेन्द्र वाणी ॥13।। एवं नमस्कृति ध्यान सिन्धु मग्नांतरात्मनः आममृत्कुंभवत्सर्व कर्मग्रंथि विलीयते ॥14॥ श्री ही धृतिकीर्तिबुद्धि लक्ष्मी लीला प्रकाशकः जीयात् पंच नमस्कारः स्वः साम्राज्य शिवप्रदः ॥15॥ सिद्धसेन सरस्वत्या सरस्वत्यापगातटे श्री सिद्धचक्र महात्म्यं गीतं श्रीसिद्धपत्तने ||13|| |॥16॥ पंचपरमेष्ठि स्तवन नम्रामरेश्वरकिरीट मिविष्टशोणा, रत्नप्रभापटलपाटलितांध्रिपीठाः 'तीर्थेश्वराः' शिवपुरीपयसार्थवाहा, निःशेषवस्तु परमार्थविदो जयन्ति ॥1॥ लोकाग्रभाग भुवनाभवभीतियुक्ताः, ज्ञानालोकित समस्त पदार्थसार्थाः स्वाभाविक स्थिर विशिष्ट सुखैः समृद्धाः, 'सिद्धा' विलीन घनकर्ममलाज्जयन्ति ।2।। आचार पंचक समाचरण प्रवीणाः सर्वज्ञशासन धुरैक धुरंधरा ये ते 'सूरयो' मित दुर्दम वादिवृन्दा विश्वोपकार करण प्रवणा जयन्ति ॥3॥ सूत्रं यतीनतिपटुस्फुटयुक्तियुक्तं युक्तिप्रमाणनय भंगगमै गंभीरं ये पाठयन्ति वरसूरिपदस्य योग्या-स्ते, वाचका' श्चतुर चारुगिरो जयन्ति ॥4॥ सिध्ध्यंगना सुख समागम बद्ध वांछाः, संसार सागर समुत्तरणैक चित्ताः ज्ञानादिभूषणविभूषित देहभागा, रागादि, घातरतयो 'यतयो' जयन्ति ॥5॥ -310
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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