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________________ सुदर्शन और मनोरमाके भव / [ 55 एक विशाल पर्वत है / उसमें व्याघ्र नाम एक भीलोंका राजा रहता है। उसकी स्त्रीका नाम कुरंगी है। वह राजा बड़ा दुष्ट है / सदा प्रजाको कष्ट दिया करता है / उस कष्टको दूर करनेके लिए प्रजा आपसे प्रार्थना करनेको आई है। सुनकर राजाने उसी समय सेनापति अनन्तको फौज लेकर उसपर चढ़ाई करनेकी आज्ञा दी। सेनापति बड़ी भारी सेना लेकर विन्ध्यगिरिपर पहुँचा। भीलराजके साथ उसका घोर युद्ध हुआ / परन्तु पापका उदय होनेसे जयलक्ष्मी अनन्तको न मिलकर भीलराजको मिली / भीलराजके इस प्रकार बलवान् होनेकी जब भूपालको खबर मिली तो अबकी वार वे स्वयं लड़ाईपर जानेको तैयार हुए। पिताकी यह तैयारी देखकर उनके पुत्र लोकपालने उन्हें रोककर आप संग्रामके लिए भीलराजपर जा चढ़ा / दोनोंका बड़ा भारी युद्ध हुआ। राजकुमार लोकपालने अपने तीक्ष्ण बाणोंसे व्याघ्रराजको मारकर विजयलक्ष्मी प्राप्त की। इधर भीलराज पापके उदयसे बड़े बुरे भावोंसे मरकर वत्सदेशके किसी छोटे गाँवमें कुत्ता हुआ / वहाँसे वह एक ग्वालिनके साथ साथ कौशाम्बीमें आ गया। वहाँ वह एक जिनमन्दिरके मुहल्लेमें रहने लगा / पापके उदयसे वहाँसे मरकर वह चम्पानगरीमें प्रियसिंह और उसकी स्त्री सिंहनीके लोध नामका पुत्र हुआ / अशुभ कर्मोके उदयसे उसके माता-पिता बालपनमें ही मर गये / वह अनाथ होगया / कोई इसकी साल-सम्हाल करनेवाला न
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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