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________________ सुदर्शन-चरित। सुदर्शन और मनोरमा एक तो वैसे ही स्वभाव सुन्दर, उसपर उन्हें जो बहुमूल्य जवाहरातके भूषण, सुन्दर वस्त्र, फूलमाला आदि पहराये गये उनसे उनकी शोभा और भी बढ़ गई। वे ऐसे जान पड़ने लगे मानों देवकुमार और सुरबालाका जोड़ा इस लोकमें अपना ऐश्वर्य बतलानेको स्वर्गसे आया है। समयपर बड़े वैभवके साथ इनका पवित्र विवाहोत्सव सम्पन्न हो गया । पुण्यके उदयसे दोनों दम्पतीको अपनी अपनी मनचाही वस्तु प्राप्त हो गई। दोनोंको इससे जो सुख जो आनन्द मिला, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इन नव दम्पतीके अब ज्यों ज्यों दिन बीतने लगे त्यों त्यों उनका प्रेम अधिकाधिक बढ़ता ही गया। दोनों सुन्दर, दिव्य देहके धारी, दोनों गुणी, फिर इनके प्रेमका, इनके सुखका क्या पूछना। दोनों ही दम्पती कल्पवृक्षसे उत्पन्न हुए सुखको भोगते हुए आनन्दसे समय बिताने लगे। इनकी सुन्दरता बड़ी ही मोहित करनेवाली थी। इन्हें जो देख पाता था उसकी आँखोंको बड़ी शान्ति मिलती थी। इसी तरह सुखसे रहते हुए पुण्यसे इन्हें एक पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई। वह भी इन्हीं सरीखा दिव्यरूप धारी, गुणी और नेत्रोंका आनन्द देनेवाला था। उसका नाम सुकान्त रखा गया। एकवार समाधिगुप्त मुनिराज अपने बड़े भारी संघके साथ विहार करते हुए चम्पापुरीमें आये। आकर वे शहर बाहर बागमें ठहरे। वे बड़े ज्ञानी और तपस्वी थे। बड़े बड़े राजे-महाराजे, देव, विद्याधर आदि सभी उन्हें मानते थे-उनकी सेवा-भक्ति करते थे।
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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