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________________ सुदर्शनका जन्म । [९ स्वप्नमें देवोंका महल देखा है उससे वह देवों द्वारा पूज्य होगा। अन्तमें अमि देखी गई है उसके फलसे वह सब कर्मोका नाशकर मोक्षलाभ करेगा । सुनिए-ये सब शुभ स्वप्न हैं और आपके होनेवाले पुत्रके गुणोंके सूचक हैं। स्वप्नका फल सुनकर सेठ बड़े खुश हुए। इसके बाद वे उन मुनिराजको नमस्कार कर प्रियाके साथ अपने महल लौट आये। इस घटनाके कुछ ही दिन बाद जिनमतीके गर्भ रहा। उसे देख बन्धु-बान्धवोंको बड़ी खुशी हुई। वह पवित्र गर्भ ज्यों ज्यों बढ़ने लगा त्यों त्यों कुटुम्बियोंको जिनमतीपर बड़ा प्रेम होने लगा। इस गर्भसे जिनमती ऐसी शोभने लगी मानों वह रत्नकी खान है। जब नौ महीने पूरे हुए तब अच्छे मुहूर्तमें पौष सुदी ४ को सुखपूर्वक उसने पुत्र-रत्न प्रसव किया। उसके प्रचण्ड तेजने सूर्यके तेजको दबा दिया। उसके शरीरकी कान्तिने चन्द्रमाको जीत लिया। वह सुन्दर इतना था कि उसकी उपमा देनेके लिए संसार में कोई पदार्थ ही न रहा । वृषभदास तब उसी समय अपने बन्धुओंको लिये जिनमंदिर पहुंचा। वहाँ उसने बड़े वैभवके साथ सुखप्राप्तिके लिए जिनभगवान्की पूजा की, जो सब सुखोंकी देनेवाली हैं। गरीब, असहाय, अनाथोंको उनकी इच्छाके अनुसार उसने दान दिया; खूब गीत-नृत्यादि उत्सव करवाया । घरोंपर ध्वजा, तोरण बाँधे गये। इत्यादि बड़े ठाट-बाटसे पुत्रका जन्मोत्सव मनाया गया। कुछ दिनों बाद सेठने पुत्रका नामकरण संस्कार किया। वह देखनेमें बड़ा सुन्दर था, इसलिए उसका नाम भी सुदर्शन
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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