SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ... (५२) कुमार को एक रूपवती युवती का रूप धारण करा के सत्यभामा के. बगीचे में बिठा दिया। सत्यभामा बड़े आदर सत्कार से उसे सुभानुकुमार के साथ विवाह देने के अभिप्राय से अपने घर ले आई पर जब पाणिग्रहण का ठीक समय आया तो उसने सिंह का रूप धारण करके सुभानुकुमार को पंजे के आघात से ऐसा पटका कि उसे मूर्छा आगई। फिर शम्भुकुमार ने अपना असली रूप धारण कर लिया। इस घटना से सत्यभामा बड़ी लज्जित हुई। प्रद्युम्नकुमार ने अपनी कामवती स्त्रियों के साथ बहुत से धन वैभव और भाई बंधुओं का सुख उपभोग किया । संसार के समस्त सार भूत पदार्थ उसे प्राप्त हो गए । पुनः पुनः कहना पड़ता है कि यह सब पुण्य का फल है । पुण्यात्मा जीव के आगे समस्त भोग, उपभोग के पदार्थ हाथ बांधे खड़े रहते हैं। ___उनतीसवां परिच्छेद * सी बीच में श्रीनेमिनाथ भगवान ने इस असार क्षण भंगुरसंसार से मोह तोड़ कर और इस जगत जंजाल से स्नेह छोड़कर जिन दीक्षा लेली और अनेक ब्रत उपवासादि तथा ज्ञान ध्यान तपोबल से केवल ज्ञान लक्ष्मी को प्राप्त कर लिया।
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy